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________________ ४. खजुराहों के जैन मन्दिर भी नीची जगती पर ही निर्मित हैं जबकि अन्य सम्प्रदायों के मन्दिर अधिक ऊंची जगती पर स्थापित हैं। शास्त्रों में स्पष्ट निर्देशित है-यावत प्रसाद जगती तादृशा अप. पृ० ५. उल्लेख्य है कि स्थल पर मात्र यह एवं सच्चिय माता का मन्दिर ही गान्धार शैली का अवशिष्ट उदाहरण है । ध्यातव्य है कि खजुराहों स्थित पार्श्व नाथ मन्दिर भी गान्धार शैली में निर्मित है। ६. प्रासाद मण्डन, अपराजित पृच्छा ७. प्रासाद मण्डन अध्याय ३ श्लोक १२-१३ ८. पार्श्वनाथ मन्दिर में मूर्ति १. अनेक विद्वानों ने भी यह तथ्य स्पष्ट किया है कि यह शिखर मूल शिखर नहीं है-ढाकी वही पृ० ३१५, डी० एच० हांडा--पृ० ४३ ओसिया-हिस्ट्री, आर्केलाजी, आर्ट एण्ड आर्कीटेक्चर १०. उल्लेख्य है कि मयूर इस क्षेत्र में बहुतायत से मिलते है । मेरे प्रयास के समय अध्ययन करते समय पार्श्व के कंगूरों पर आकर प्रायः वे बैठ जाते थे अथवा कुछ भोज्य पदार्थ के आकर्षण में कू-कू की ध्वनि के साथ आ जाया करते थे। ११. उल्लेख है कि भण्डाकर महोदय ने इस अभिलेख के आधार पर लिखा है कि यह महावीर मन्दिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा इस मंदिर के मण्डप का पुर्ननिर्माण जिन्दक नामक व्यापारी के द्वारा वि० सं० १०१३ अर्थात् ९५६ ई० में हुआ (भण्डारकर पृ० १०८) ढाकी महोदय ने भी इसी तथ्य को स्वीकार किया है (पृ० ३२३)। परन्तु प्रो० हांडा के अनुसार प्रशस्ति के अध्ययन के ज्ञात होता है कि वत्सराज प्रतिहार के समय ओसिया के सूर्यमंदिर का निर्माण हुआ था जिसके मण्डप का पुर्ननिर्माण जिन्दक के पिता पूरा हुआ । ---डॉ. शशिकलाश्रीवास्तव ६२, चित्रगुप्त लेन सुभाष नगर, गोरखपुर-२७३००१ १०० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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