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________________ जब तक जीवित है आतंकवाद शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह ये आंखें अब आतंकवाद को देख नहीं सकती ये कान अब आतंक का नाम सुन नहीं सकते यह जीवन भी कृत संकल्पित है कि उसका रहे या इसका यहां अस्तित्व एक का रहेगा । इसी प्रकार भारत-पाक संघर्ष की पृष्ठभूमि में कवि ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष को संबोधित किया था उसकी पंक्तियां देखिए परस्पर कलह हुआ तुम लोगों में बहुत हुआ, वह गलत हुआ । मिटाने मिटने में क्यों तुले हो इतने सयाने हो । जुटे हो प्रलय कराने विष से धुले हो तुम सदय बनो । अदय पर दया करो अभय बनो । 1 समय पर किया करो अभय को अमृत-मय वृद्धि सदा सदा सदाशय दृष्टि रे जिया, समष्टि जिया करो । 'मूक माटी' एक प्रतीक काव्य है, जहां माटी के माध्यम से व्यक्ति की उपादान शक्ति को अभिव्यंजित किया गया है । डॉ० भास्कर ने उसमें से सामुदायिक चेतना की पृष्ठभूमि में छिपी आध्यात्मिकता को उजागर किया है । इसका अभिव्यंजना शिल्प बेजोड़ है, उसमें और भी अनेकों रत्न जड़े हैं जो जब तब अपनी चमक देते हैं । - परमेश्वर सोलंकी खण्ड २२, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only २४१ www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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