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________________ समीक्षा : 'णायकुमार चरिउ' का नायक D हरिशंकर पाण्डेय नागकुमार चरित (णायकुमार चरिउ) अपभ्रंश काव्यधारा के धौरेय-धृति, समुल्लसित प्रतिभा और महनीय मेधा सम्पन्न सुप्रतिष्ठित महाकवि अभिमानमेरू पुष्पदंत की सुन्दर, सुबोध लावण्यमण्डित एवं कमनीय कला कलित रचना हैं, जिसमें महच्चरित्र नागकुमार के माध्यम से कर्तव्याकर्तव्य निर्देश एवं आहत-धर्म की प्रतिष्ठा रूप महदुद्देश्य ही मुख्य अभिलक्ष्य एवं परमकाम्य रूप में निरूपित है। साहित्य सिंधु की सौवीर्य साधना से समुत्थित रत्नमणियों की माला को सृजित कर महाकवि पुष्पदन्त ने शेष रसिक अथवा सहृदयचेतना संपन्न जीवित संसार के लिए 'नायकुमार चरिउ' को प्रस्तुत किया, जिसमें दर्शन का सत्य, विज्ञान का तथ्य रमणीयता और क्षण-क्षण अभिनवता से युक्त सुन्दर के रूप में अभिव्यक्त हुआ है, जो लोकोत्तर आह्लाद जननसमर्थ एवं 'कांतासम्मिततयोपदेशयुजे' की सात्विक सरणि में अधिष्ठित है । काम और अर्थ का प्रभूत भोगकर एवं उनकी ह्रस्वता सिद्धकर धर्मसाधित मार्ग का अनुगमन करते हुए अन्त में परम शिवस्वरूप मोक्ष में प्रतिपन्नता का प्रतिपादन इस चरित्र काव्य का केन्द्रीय विदु है । नागकुमार इस ग्रन्थ का नायक है । वह कनकपुर के राजा जयंधर का पुत्र है। उसकी विमाता का पुत्र श्रीधर था, जो अत्यन्त क्रूर एवं दृष्ट प्रकृति का था। उसी के कारण नागकुमार राज्य छोड़कर बाहर चला जाता है । अपने बुद्धि-कौशल एवं धैर्यादि गुणों के द्वारा प्रभूत धन दौलत के साथ यश का अर्जन करता है और बाद में पिता द्वारा पुनः बुलाये जाने पर राज्याभिषिक्त होता है । शास्त्रीय दृष्टि से नायकत्व जो व्यक्ति कथानक को मुख्य उद्देश्य या फलागम तक ले जाता है तथा मुख्य फल का अधिकारी होता है वह नायक कहलाता है। नागकुमार उत्थान-पतन के थपेड़ों को सहता है, और अन्त में संपूर्ण कथा को मोक्ष-धर्म में प्रस्तुत करता है तथा स्वयमेव उस धर्म का अधिकारी बनता है। काव्य शास्त्र में सामाजिक आधार पर नायक के तीन भेद किए गये हैंपति, उपपति और वैशिक । नागकुमार पति श्रेणी का नायक है। जो नायिका (स्वकीय) का विधिवत् पाणिग्रहण करता है । वह पति नायक है । रसमंजरीकार ने उल्लेख किया खण्ड २२, अंक ३ २३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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