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२. तृतीया बहुवचन की विभक्ति -हिं के सही प्रयोग, अर्थात् गुरु वर्ण का
प्रयोग(i) अ. ३, गाथा ४७ का प्रथम पाद
वंदणणमंसणेहिं/अभट्ठाणाणुगमणपडिवत्ती ।
उपरोक्त प्रयोग गाथा के मध्य में आगत शब्द-रूप का उदाहरण है। (ii) पादान्त में तो ऐसे अनेक प्रयोग मिलते हैं
(अ) प्रथम पाद के उदाहरण • संपज्जदि/णिव्वाणं/देवासुरमणुयरायविहवेहिं ।१.६। • जो/जाणदि/अरहंतं दव्वन्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं ।१.८०। ० समवेदं/खलु/दव्वं/संभवठिदिणाससण्णिदह्रहिं ।२.१०। • आपिच्छ/बंधुवग्गं/विमोचिदो/गुरुकलत्तपुत्तेहिं ।३.२। • जं/अण्णाणी/कम्म/खवेदि/भवसयसहस्सकोडीहिं ।३.३८। • ऊपर देखो अ. ३ की गाथा ६९ का 'कम्मेहिं' प्रयोग (ब) द्वितीय पाद के उदाहरण ० अत्थो/पज्जाओ/सो/संठाणादिप्पभेदेहि ।।२.६०।।
० संजमतवणाणड्ढा/पणिवदणीया/हि/समणेहिं ।।३.६३॥ इन गाथाओं के उदाहरणों से स्पष्ट है कि छन्द की मात्राओं के नियमन के लिए आवश्यकता के अनुसार लघु वर्ण के लिए ---हि और गुरु वर्ण के लिए --हिं विभक्ति का प्रयोग किया गया है । ३. परंतु 'प्रवचनसार' में ४५ ऐसे प्रसंग हैं जहां पर ----हि (लघु) के बदले में -हिं (गुरु) का प्रयोग है (अ. १ में १४ बार, अध्याय २ में २५ बार और अध्याय ३ में ६ बार)। • जहां पर -हि के प्रयोग से छंदोभंग होता है उनमें से कुछ उदाहरण देखिए---- (i) प्रथम गण में छंदोभंग __ तेहिं/पुणो/पज्जाया/पज्जयमूढा/हि/परसमया ॥२.१ ब।। (ii) दूसरे गण में छंदोभंग ____ मोहिदीहिं/विरहिया/तम्हा/सा/खाइग/त्ति/मदा ॥१.५५ब।। (iii) तीसरे गण में छन्दोभंग
दुक्खसहस्सेहि/सदा/अभिधुदो/भमदि/अच्चंतं ॥१.१२ब।। (iv) चौथे गण में छंदोभंग
तम्हा/जिणमग्गादो/गुणे हिं/आदं/परं/च/दव्वेसु ।१.९०॥ (v) पांचवें गण में छंदोभंग
पज्जाया/जीवाणं/उदयादिहि/णामकम्मस्स ॥२.६१ब।। (vi) छठे गण में छन्दोभंग (अ) सो/णेव/त/विजाणदि/उग्गहपुव्वाहि किरियाहिं ॥१.२१॥ (ब) सपदेसेहि/समग्गो/लोगो/अठेहि/णिट्ठिदो/पिच्चो ।२.४३।
: तुमसी प्रज्ञा
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