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________________ जहां समान सुनाई देने वाले अक्षरों की आवृत्ति हो वहां मनुप्रास अलंकार होता है। यथा दवियदि गच्छदि ताई ताई सम्भावपज्जयाई जं। दवियं तं भण्णंते अणण्णभूदं तु सत्तादो । -पं० ९ प्रायः सभी ग्रन्थों में अनुप्रास है । निय. २६ उल्लेख-अलंकार जहां किसी वस्तु या पदार्थ का अनेक प्रकार से वर्णन या उल्लेख किया जाए, वहां उल्लेख अलंकार होता है । यथा पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीवस्सदि जो हु जीविदो पुव्वं । सो जीवो पाणा पुण, बलमिदियमाउ उस्सासो॥ ..... -पंचा. ३० पं. २९,३८,७१,७२, सम. ३८,६७, प्र०. १२, निय. ४,१००, द.पा. ३, सू. ९, चा. पा. ११,१२, बोध. पा. १५, भाव. पा. २, मोक्षपा. ५, लि. २, शी.पा. ३६,३७, द्वादशानुप्रेक्षा १९ । यमक अलंकार स्यात्पाद-पद-वर्णानामावृत्तिः संयुतायुता। भिन्न अर्थ वाले पाद, पद और वर्ण की संयुक्त और असंयुक्त रूप से आवृत्ति को यमक कहते हैं । यथा-निय. गा. २ ते ते सव्वे समगं समगं पत्तेगंमेव पत्तेगं । यहां एक समगं का अर्थ साथ, सबको और दूसरे 'समगं' का अर्थ साथ-साथ है। इसी तरह पत्तेग-प्रत्येका और दूसरे पत्तेग का अर्थ पृथक्-पृथक् है । श्लेष अलंकार पदस्तैरेव भिन्न वाक्यं वक्त्येकमेव हि । जहां एक ही शब्द के दो अर्थ हो, वहां श्लेष अलंकार होता है । यथा-- णत्थि परोक्खं किंचि वि समंत सव्वक्ख-गुण-समिद्धस्स । -प्रव० २२ 'सव्वक्ख' में स्थित अक्ख के दो अर्थ हैं एक इन्द्रिय और दूसरा आत्मा। समस्त इन्द्रियों के गुणों से समृद्ध अथवा आत्मा के समस्त गुणों से सम्पन्न । दीपक अलंकार आदिमध्यान्तवत्यैकपदार्थनार्थसङ्गतिः । वाक्यस्य यत्र जायेत तदुक्तं दीपकं यथा ।। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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