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________________ के अवसर पर प्रथम विश्व धर्म संसद् (सन् १८९३ ) का यादगार उपक्रम बना । इसी संस्थान ने अब ग्लोसरी ऑफ जैन टर्मस् – जैन पारिभाषिक शब्दों की सूची प्रकाशित कर अनुकरणीय कार्य किया है । यद्यपि इस क्षेत्र में लगभग डेढ़ दशक पूर्व ही 'तुलसी प्रज्ञा' ने प्राथमिक कार्य किया था और जैन टेक्निकल टर्मस् — की एक सीरिज प्रकाशित की थी; किन्तु यह कार्य जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही विशाल और दीर्घकालिक भी है। बहुत से लेखकों ने भी अपनी-अपनी पुस्तकों में प्रयुक्त जैन टर्मिनोलोजी के शब्दों की सूची प्रकाशित की हैं जिनमें २०० से २००० तक पारिभाषिक शब्दों के अंग्रेजी पर्याय दिए गए हैं किन्तु उनमें एकरूपता और आवश्यक स्तर का प्रायः अभाव दीख पड़ता है । प्रस्तुत संग्रह में तीन हजार से अधिक पारिभाषिक शब्द सूचीबद्ध हुए हैं । यह संख्या बहुत छोटी है क्योंकि जैन पारिभाषिक शब्दों की संख्या हजारों में है; किन्तु संख्या से पूर्व पारिभाषिक शब्दों के लिए उपयुक्त अंग्रेजी पर्याय तय करने तथा उनमें एकरूपता और स्तरीकरण बनाने की आवश्यकता है। डॉ० नंदलाल ने जैन विद्वान् डॉ० एम. ए. ढाकी, डॉ० सागरमल जैन, प्रो० मधुसेन, डॉ० जीतूभाई शाह, डॉ० ए. के. जैन आदि कतिपय लेखकों से सहयोग लिया है । पद्मभूषण पं० दलसुख भाई मालवणिया का आशीर्वाद भी उन्हें मिला है । इसलिये उनके द्वारा सुझाये पर्याय सर्वमान्य हो जाएं तो यह काम आगे बढ़ सकता है । जैसा कि आदरणीय मालवणियाजी ने अपने आशीर्वाद में कहा है, जैन विद्वानों को इस ग्लोसरी को अपनाना चाहिए और इसके परिष्कार और बढ़ोतरी के लिए अपने सुझाव देने चाहिए । सुन्दर और यथासंभव निर्दोष प्रकाशन के लिए जैन इन्टरनेशनल धन्यवाद का पात्र है और डॉ० नंदलाल की इस दुरूह कार्य के लिए भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए कि एक रसायनशास्त्री ने जैन टर्मस् को नया स्वरूप प्रदान करने का दुष्कर कार्य कर दिया है । राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार मूल्य - ८० / - रु० 1 'चंमगूंगो' सन् १९९१ में 'हासियो तोड़ता सबद' ६. हासियो तोड़ता सबद - रवि पुरोहित, प्रकाशकसमिति, श्रीडूंगरगढ़ - ३३१८०३, प्रथम संस्करण - १९९६, श्री रविशंकर राजपुरोहित का पहला कविता-संग्रह छपा था । पांच वर्ष बाद वह पुन: साहित्यजगत् के सामने लेकर उपस्थित हुआ है । चमगूंगो की कविताओं के संबंध में हमने लिखा था कि 'ये कविताएं प्रथम प्रयास होते हुए भी 'चमगूंगो की बिरादरी' में नहीं लगती । ' आज वह साहित्य-शाद्वल में प्रवेश को, उसके हासिये के पत्थरों को तोड़ने के इरादे से उपस्थित हुआ है और कहता है कौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता, पत्थर तो जरा तबियत से उछालकर देखो, यारो ! संग्रह की कविताओं में 'तिरसा', 'मुंछ', 'खंख', 'कविता', 'नारी', 'बोझ', 'बालक', 'ईलाज' और सम्बन्ध - शीर्षक कविताओं में गहराई है, युग बोध है, जीवन १६२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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