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________________ ६२४. लातां को देव बातां सै कोनी मान । ६२५ लायलाग्या किसो कुवै खुदै । ६२ . लालाजी करी ग्यारस अर बा बारस की दादी । ६२७. लीद भी खाय तो हाथी की खाय जिको पेट तो भरै । ६२८. लीप्यो पोत्यो आंगणू पहरी ओढ़ी नार सुन्दर लागे । ६२९. लुगाई के पेट मे टाबर खटा ज्याय पण बात नहीं खटाय । ६३०. लुगाई को न्हाणूं मर्द के खाणूं जल्दी । ६३१. लूण फूट फूट कर निकले। ६३२. लण बिना रसोई पूण । ६३३. ले पडोसण झुपडी नित उठ करती राड आदो बगड बुहारती सारो हि बुहार । ६३४. ल्याऊ चून उधारो कोई गुड दे तो मर पड कर खालूं । ६३५. ल्हसण बी खायो रोग "बी" कोनी गमायो । "व" ६३६. विद्या बाणियो बैल नप ये नहिं जातगिणंत । जो ही इनसे प्रेम करै ताहू के . लिपटत । ६३७. वेश्या वर्ष घटावै अर जोगी वधावे । . "स" ६३८. सगो कीजै जाणकर पानी पीणो छाणकर । ६३९. सगो समर्थ कीजिए जद तद आवै काज । ६४०. सदा दीवाली संत के आठो पहर आनन्द । ६४१. सदा न वर्षे बादली सदा न सावण होय । ६४२. सदा ही इकसार दिन कोनी रेवै । ५४३. सपूत की कमाई मैं सैंको सीर । ६४४. सपूत तो पाडोसी को भी चोखो । ६४५. सब कोई झुगते पालड का सीरी हैं । ६४६. समंदर को के सूक, सूकै तो भी गोडा ताई पाणी । ६४७. सरीर के रोगी को दवा है मन के रोगी की कोनी। ६४८. सलाम तांई मियां नै क्यूं रूसायो । ६४९. सांकडी गली अर मारणा बलद । ६५०. सांगर फोग थली को मेवो। ६५१ सांच ने आंच कोन्या । ६५२. सांची कहया झाल उठ । ६५३. सांप के चीखलै को के बडो ओर के छोटो । सांप को खायोडो बी छायां से के डर । ६५४. सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटै । ६५५. सांप सगलै टेढ़ो मेढ़ो चाल पण बिल मे बडे जद सिदो। खंड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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