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________________ १०५. क के को आंकई कोनी आवै अर नाम विद्याधर । १०६. करै तो काऊ का सीखे तो नाऊ का । १०७. कठे राजा भोज कठ गांगलो तेली। १०८. कठे राम राम कठे ट्रां ट्रां । १०९. कदै धी घणा कद मूठी चणा । ११०. कदै नाव गाडी पर कदै गाडी नाव पर । १११. कनफडा दोनें दीन बिगाड्या । ११२. कपडा फाट' गरीबी आई जूती टूटी चाल गमाई । ११३. कपूत जायो भलो न आयो। ११४. कवित सौहे भाट ने खेती सौहे जाट ने। ११५. कबूतर ने कुवो ही दीखे हैं। ११६. कम खा लेणा पण कम कायदे नहीं रहणा । ११७. कमजोर की लुगाई सबकी भोजाई । ११८. कमावै थोडो खरचै घणो पेलो मूखं उणने गिणू । ११९. कमेडी बाज ने कोनी जीत । १२०. करडी बाधै पागडी घुरड लिवावै नक्ख । करडी पहर मोचडी अण सरज्या ही दुःख । १२१. करन्ता सो भोगंता खोदंता सो पड़ता। १२२. करम कमेडी सो मन राजा को सो। १२३. करमहीन खेती कर के काल पडै के बलद मरे । १२४. करम में लेख्या कंकर तो के करै शिवशंकर । १२५. कल तूं कल दब। १२६. कसम मरे को धोखो कोनी सुंपनू साचो होणो चावे । १२७. कसाई के दाणे ने बकरी थोड़ी ही खाय जाय । १२८, कांट कंटीली झाखडी लागे मीठा बोर । १२९. कांटे से कांटो नीसर । १३०. कादां खाया कमधजां घी खायो गोला चुरु चाली ठाकरां बाजत ढोला। १३१. कांधे पर छोरो गांव में बिढोरो। १३२. काग कुहाडो कुटिल नर काट हि का, सुई सुहागो सत् पुरुष सांठ ही सांठ। .१३३. काग पढ़ायो पीजरै पढ़गो चारू वेद समझायो समझे नहीं रह्यो ढेढ़ को ढ़ेढ़ । १३४. कागला के सराप सं ऊंट कोनी मरे । १३५. कागलो हंस हाली सीखै हो सो आप हाली भूलगो। १३६. कागा कुत्ता कुमाणसा तीन्यूं एक निकास ज्या ज्यां सेरयां संचरै त्यां त्यां करै विनाश । १३७. कागा हंस न गधा जती। १३८. काचो दूध खटाई फाई तातो दूद जमाव। .... .. खण्ड २२ अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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