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________________ मृच्छकटिककालीन भारतीय संस्कृति [ कुमारी बब्बी भारतीय साहित्य परम्परा में महाकवि शूद्रक एवं उनकी अमरकृति मृच्छकटिक का अप्रतिम स्थान है । काव्य की उदात्तता एवं कल्पना की रमणीयता के साथ यथार्थ सामाजिक जीवन की त्रिपुटी का अलम्य उदाहरण मृच्छकटिक में प्राप्त होता है । तत्कालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति के यथार्थ उपन्यस्त करने में कविप्रवर शूद्रक जितना सफल हुए हैं उतना शायद ही अन्य कोई कवि या नाटककार हो सका है । मृच्छकटिक में चारुदत्त और वसन्तसेना के प्रणयकीर्तन के साथ-साथ मानव स्वभाव एवं प्रकृति, जातीय गुण, पारम्परिक रीतिरिवाज, प्रकृति का मनोरम रूप आदि का सफलता पूर्वक उपस्थापन हुआ है । प्रस्तुत संदर्भ में मृच्छकटिक कालीन भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है । इस संदर्भ में मृच्छकटिक में प्रतिपादित(१) सामाजिक व्यवस्था । (२) आर्थिक जीवन । (३) मनोरंजन | (४) भोजन । (५) परिधान । (६) प्रसाधन । (७) धार्मिक जीवन | (८) शिक्षा और (९) कला । -- Jain Education International -आदि विषयों पर संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत है । १. सामाजिक व्यवस्था तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में परिवार की स्थिति अच्छी थी । पति-पत्नी, बच्चे और वृद्ध पुरुष एक परिवार में रहते थे। परिवार का एक प्रधान होता था जो सबकी देखभाल करता था। नायक चारुदत अपने परिवार का प्रधान था । उसकी पत्नी का नाम धूता एवं पुत्र रोहसेन था । बाद में वसन्तसेना भी उसके जीवन में आती है तथा अपने सद्गुणों के कारण उसके घर की सदस्या बन जाती है। मिलन के बाद वसन्तसेना को देखकर घूता कहती है दिट्टिआ कुसलिणी बहिणिआ वसन्तसेना -- अहुणा कुसलिणी संवृत्तम्हि ।" खण्ड २२, अंक १ For Private & Personal Use Only ६१ www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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