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________________ ८७. दि©तो अरहंता', अणगारा य बहवे उ जिणसिस्सा। वत्तणुवत्ते णज्जति, जं नरवतिणो वि पणमंति ।। ८८. उवसंहारो देवा, जह तह राया वि पणमति' सुधम्म । 'तम्हा धम्मो मंगलमुक्किट्ठ निगमणं एवं ।। ८९. बितियपइण्णा' जिणसासणम्मि साहेति साहवो" धम्म । हेउ जम्हा 'सब्भाविएसु हिंसादिसु जयंति ।। ८९।१. जह जिणसासणनिरया, धम्म पालेंति साहवो सुद्धं । न कुतित्थिएसु एवं, दीसइ परिपालणोवाओ । ८९।२. तेसु वि य धम्मसद्दो, धम्म नियगं च ते पसंसंति । नणु भणिओ सावज्जो, कुतित्थिधम्मो जिणवरेहिं । ८९१३. जो तेसु" धम्मसद्धो, सो उवयारेण निच्छएण इहं । जह सीहसदु सीहे, पाहण्णुवयारओऽनत्थ ।। १. अरि ० (अ)। २. य (अचू, जिचू)। ३. ० सीसा (रा, हा, जिचू)। ४. पणमंति (जिच)। ५. तम्हा मंगलमुक्किट्ठमिति निगमणं होति णायव्वं (जिचू), • मंगलमुक्किट्टमिइ अ निगमणं (हा), • मंगलमुक्कट्ठमिइ निगमणं च (अ, रा)। ६. बीय ० (ब) बिइयपइन्ना (हा)। ७. साहुणो (अ, ब)। ८. साभाविएसु अहिंसा दिसु (जिचू), साभावियं अहिंसादिसु (अचू), अन्ये तु व्याचक्षते-- सम्भाविएहिं० (हाटी)। ९. गा० ८९ के बाद ८९।१,२,३---इन तीन गाथाओं का दोनों चूणियों में कोई उल्लेख नहीं है । टीका मे ये गाथाएं नियुक्तिगाथा के क्रम में प्रकाशित हैं किन्तु पूर्वापर सम्बन्ध को देखते हुए ये गाथाएं भाष्य की प्रतीत होती हैं। ये तीनों गाथाएं ८९वीं गाथा की व्याख्या प्रस्तुत करती हैं। दूसरी बात यह है कि गा. ८९ के बाद ९० की गाथा का सीधा सम्बन्ध जुड़ता है। मुद्रित टीका में प्रथम भाष्यगाथा के रूप में ‘एस पइण्णासुद्धि'.''गाथा हैं । इस गाथा में हेतुविश द्धि का वर्णन है तथा प्रतिज्ञाशुद्धि की बात बताई जा चुकी है, इसका उल्लेख है । हाटी गा. ९३-९५ (८९/१-३) इन तीन गाथाओं में प्रतिज्ञाशुद्धि का वर्णन है । भाष्यकार के उक्त कथन से ८९/१-३ - इन तीनों गाथाओं को भाष्य गाथा मानने में कोई विप्रतिपत्ति नहीं होती। १०. तेसि (ब)। खण्ड २२, अंक १ १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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