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________________ २०. ततिए आयारकहा उ, 'खुड्डिया आय-संजमोवाओ'। तह जीवसंजमो वि य, होति चउत्थम्मि अज्झयणे ।। २१. भिक्खविसोधी तव संजमस्स गुणकारिया तु पंचमए। छठे आयारकहा, महती जोग्गा' महयणस्स ।। २२. वयणविभत्ती पुण, सत्तमम्मि पणिहाणमट्रमे भणियं । ___नवमे विणओ दसमे, समाणियं एस भिक्खु त्ति ।। २३. दो अज्झयणा चलिय, विसीययंते थिरीकरण मेगं । बितिए विवित्तचरिया', असीयणगुणातिरेगफला ।। २४. 'दसकालियस्स एसो' पिंडत्थो वण्णितो समासेणं । एत्तो एक्केक्कं पुण, अज्झयणं कित्तइस्सामि । २५. पढमज्झयणं दुमपुप्फियं ति चत्तारि तस्स दाराई। वण्णित्तुवक्कमाई', धम्मपसंसाइ अहिगारो॥ २५॥१. ओहो जं सामन्नं, सुताभिहाणं चउन्विहं तं च । अज्झयणं अज्झीणं, आयज्झवणा य पत्तेयं ।। १. खुड्डियायार संजमो० (ब) २. जोग्गो (अ, ब)। ३. ० हाण अट्ठमे (अ)। ४, बीए (ब)। ५. विवत्त० (अ)। ६. दसवेयालियस्स उ (जिचू), दसकालियस्सेह (अचू)। ७. वनइ० (जिचू)। प्रस्तुत गाथा दोनों चूणियों में उपलब्ध है। किन्तु मुनि पुण्यविजयजी ने अगस्त्यसिंह चूणि के संपादन में इसे नियुक्तिगाथा के क्रम में न रखकर उद्धृत गाथा के रूप में प्रस्तुत किया है। पंडित दलसुख भाई मालवणिया के अनुसार यह गाथा उपसंहारात्मक और संपूर्ति रूप है । टीका तथा आदर्शों में यह गाथा मिलती है। हमने इस गाथा को नियुक्तिगाथा के क्रम में रखा है क्योंकि अन्य नियुक्तियों में भी ऐसी उपसंहारात्मक गाथाएं मिलती हैं--- उत्तरज्झयणाणेसो, पिंडत्थो वण्णितो समासेणं । एत्तो एक्केक्कं पुण, अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥ (उनि २७) ८. वनिउ० (अ), वण्णेउ० (हा)। ९. दोनों चूणियों में प्रस्तुत गाथा उल्लिखित नहीं है, लेकिन इसका भावार्थ दोनों चूणियों में मिलता है। कुछ पाठांतर के साथ उत्तराध्ययन नियुक्ति में भी ऐसी गाथा मिलती है। (देखें उनि २८) १०. उनि २८।१। सुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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