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८. नाम ठवणा दविए, माउगपद-संगहेक्कए चेव ।
पज्जव भावे य तहा, सत्तेते एक्कका होंति' ॥दार।। ९. नामं ठवणा दविए, खेत्ते काले तहेव भावे य । ___ एसो खलु निक्खेवो, दसगस्स उ छव्विहो होति ।। ९।१. बाला 'मंदा किड्डा", बला य पण्णा य हायणि पवंचा ।
पब्भारमुम्मुही सायणी य, दसमी उ कालदसा ।। १०. दव्वे अद्ध अहाउय, उवक्कमे देस काल काले य ।
तह य पमाणे वण्ण, भावे पगयं तु भावेणं ।। ११. सामाइय अणुकमओ, वण्णेउं विगयपोरिसीए ऊ ।
निज्जूढं किल' सेज्जंभवेण दसकालियं तेणं ।। १२. 'जेण व जंव पडुच्चा", जत्तो जावंति जह य ते ठविया।
सो तं च तओ ताणि य, तहा य कमसा कहेयव्वं ।।दा।। १३. सेज्जभवं गणधर, जिणपडिमादंसणेण पडिबुद्धं ।
मणगपियरं दसकालियस्स निज्जूहगं वंदे ।। १. भणिया (जिचू)। २. यह गाथा अचू और जिचू में व्याख्यात है किन्तु अचू की भूमिका में इस गाथा
को नियुक्तिगाथा के क्रम में नहीं माना है । (अचूभूमिका पृ. ८) ३. किड्डा मंदा (रा, हा)। ४. टीका में यह गाथा नियुक्ति के क्रम में है किन्तु जिनदासचूणि में यह गाथा उद्धृत गाथा के रूप में उल्लिखित है। यह गाथा मूलत: 'तंदुलवेयालिय' (गा ३१) प्रकीर्णक की है किन्तु बाद में यह नियुक्तिगाथा के रूप में लिपिकारों या टीकाकार द्वारा जोड़ दी गई है, ऐसा प्रतीत होता है। हमने इसे निगा के क्रम में नहीं रखा है । दश्रुनि ३, पंकभा २५२, निभा ३५४५ । ५. आवनि ६६० । ६. पोरसीए (अ), सीओ (रा)। ७. किर (हा)। ८. यह गाथा अचू में संकेतित नहीं है किन्तु टीकाकार इस गाथा के लिए 'चाह निर्यक्तिकारः' लिखते हैं । किन्तु इसके पूर्वापर संबंध को देखने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह गाथा अन्य आचार्यों द्वारा रची गई है क्योंकि इस गाथा की विषयवस्तु का ही पुनरावर्तन अगली गाथाओं में हुआ है।
इस गाथा के बाद जिनदासकृत चूर्णि में 'इमाओ निरुत्तिगाहाओ चउरो अज्झप्पस्साणयणं ..", अहिगम्मन्ति व.", जह दीवा'.", अट्ठविहं"इनका उल्लेख है लेकिन हस्तप्रतियों में ये गाथाएं आगे (गा २६,२७,२८,३०) इस क्रम में मिलती हैं। ९. जेणेव जं च पडुच्च (जिचू)।
तुलसो प्रशा
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