________________
रहना ही श्रेयस्कर समझती है। सबके द्वारा उपेक्षित होने पर भी कभी किसी के लिए सरल शब्दों में भी उलाहना नहीं देती । जिसके प्रति उसका सर्वस्व समर्पित था, उसकी घोर उपेक्षा के हलाहल को भी नीलकण्ठ की तरह शांत होकर पी जाती है, बदले में कोई प्रतिदान नहीं चाहती, प्रकारांतर से अपने पति लक्ष्मण के द्वारा उसका स्मरण और उनका एक पत्नीव्रतो होना ऊर्मिला के लिए मृत्यु के मुख में गये हुए व्यक्ति के लिए जीवनदान के समान है । शूर्पनखा के प्रसंग में लक्ष्मण ने इस बात को स्वीकार किया है कि वे विवाहित हैं, और उनकी एक पत्नी है, इसलिए वे दूसरी शादी नहीं कर सकते। उपसंहार ____ यद्यपि आदिकवि वाल्मीकि पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि भारतीय समाज में स्वीकृत पारिवारिक व्यवस्था एवं सम्बन्धों की मर्यादा से वे अपरिचित थे । अथवा सन्देश प्रेषण एवं विरहणियों की मनोदशा से अनभिज्ञ थे, फिर भी पतिवियुक्ता, विरहव्यथिता ऊर्मिला के प्रति उदासीनता एवं उपेक्षा का मेरी दृष्टि में एक ही कारण हो सकता है कि कवि इस भय से ग्रसित था कि यदि ऊर्मिला के त्याग-तपस्या का वर्णन किया गया तो उसका धवल चरित्र सीता के समतुल्य उठ खड़ा होगा और यह प्रश्न उपस्थित हो जाएगा कि मुख्य नायिका कौन सीता या ऊर्मिला ? जो शायद कवि को अभीप्सित नहीं था । अतः कवि ने ऊर्मिला के प्रति मौन रहना हो उचित समझा।
अथवा किष्किन्धा काण्ड के अन्त में महद्वनगुफा में रामदूत-हनुमान्, अंगद, जाम्बवान् आदि की प्राणरक्षा करने वाली एकांत साधिका स्वयंप्रभा की तरह मिला का चरित्र भी पारिवारिक मर्यादा से बंधा एक संदेश है जो वाल्मीकि ने प्रस्तुत किया है । स्वयंप्रभा की खोज हनुमान् ने कर ली इसलिए उसका वर्णन हो गया किन्तु ऊर्मिला की खोज करने वाला कोई पात्र कवि ने नहीं धुना। यदि ऊर्मिला से भी कोई उसकी साधना के लिए प्रश्न करता तो संभवतः वह भी स्वयंप्रभा की तरह उत्तर देती
"चरन्त्या मम धर्मेण न कार्यमिह केनचित्" कि मुझे अपने धर्मपालन में किसी से कोई सहानुभूति अथवा सहाय्य नहीं चाहिए।
३२८
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org