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________________ की कायोत्सर्ग मूर्तियों में किसी प्रातिहार्य का न दिखाया जाना शिल्पी की सूझ का सूचक एवं उत्तरपुराण के विवरणों के सर्वथा अनुरूप हैं। दूसरी ओर पार्श्वनाथ की ध्यानस्थ मूर्तियों में प्रातिहार्यों का अंकन मिलता है क्योंकि ध्यानस्थ मूर्तियां उनके तीर्थकर पद प्राप्त करने के उपरान्त की स्थिति को अभिव्यक्त करती हैं। एलोरा की कायोत्सर्ग मूर्तियों में पार्श्वनाथ की तपस्या में उपस्थित किये गये तरह-तरह के उपसों का प्रसंग दिखाया गया है। ये उपसर्ग स्पष्टत: कैवल्य प्राप्ति के पूर्व की स्थिति का अंकन हैं। इसी कारण पार्श्वनाथ की उपसर्ग मूर्तियों में अष्टप्रातिहार्यों को नहीं दिखाया गया है। इस संदर्भ में एक और उल्लेखनीय बात एलोरा की जैन गुफाओं में पाश्वनाथ की उपसर्ग मूर्तियों के एक नियत स्थान पर उत्कीर्णन से संबंधित है। पार्श्वनाथ की सभी उपसर्ग मूर्तियां कठिन तपश्चर्या में लीन बाहुबली की मूर्ति के सामने उत्कीर्ण हैं। स्मरणीय है कि पार्श्व जहां शबर के विभिन्न उपसगों को, शांत भाव से विचलित हुए बिना सहते रहे वहीं बाहुबली भी अपनी साधना में इस सीमा तक रमे कि शरीर से लिपटी माधवी और शरीर पर सर्प, वृश्चिक जैसे जन्तुओं की उपस्थिति से वे सर्वथा अप्रभावित और ध्यानमग्न रहे। यहां यह भी उल्लेख्य है कि राष्ट्रकूट शिल्पी ने पार्श्वनाथ की उपसर्ग और बाहुबली की साधनारत मूर्तियों के आमने-सामने उत्कीर्णन की परम्परा को पूर्ववर्ती चालुक्य कला से प्राप्त किया था, जिसके उदाहरण बादामी की गुफा सं० ४ और अयहोल की जेन गुफा (लगभग ६वीं शती ई०) में देखी जा सकते हैं। एलोरा की जैन गुफाओं में तीन प्रमुख जैन यक्षियों-चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावती तथा कुबेर यक्ष की स्वतंत्र एवं जिन संयुक्त मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। चक्रेश्वरी की चार, आठ और बारह हाथों वाली कुल चार मूर्तियां गुफा सं० ३० और ३२ में उकेरी हैं। इनमें परम्परानुरूप गरुड़वाहना चक्रेश्वरी के दो या अधिक हाथों में चक्र तथा शेष में पद्म, गदा और वज्र जैसे आयुध हैं। द्वादशभुज चक्रेश्वरी की एक मूर्ति एलोरा की गुफा-३० में है । गरुड़वाहना चक्रेश्वरी की पांच अवशिष्ट दाहिनी भुजाओं में पद्म, चक्र, शंख एवं गदा है। यक्षी की केवल एक वामभुजा सुरक्षित है, जिसमें खड्ग है।" सर्वाधिक मूर्तियां अम्बिका की बनीं, जिनमें अम्बिका सर्वदा द्विभुजा एवं दिगम्बर-परम्परा के अनुरूप सिंहवाहना हैं, अबिका के एक हाथ में आग्रलुम्बि व दूसरे में पुत्र है। पार्श्वनाथ की पद्मावती यक्षी की केवल एक स्वतंत्र मूर्ति मिली है जो गुफा संख्या ३२ में है। कुक्कुट-सर्प वाहन वाली अष्टभुजा यक्षी के अवशिष्ट करों में पद्म, मूसल, खड्ग, खेटक व धनुष स्पष्ट है। अंविका के समान ही एलोरा में कुबेर या सर्वानुभूति की भी सर्वाधिक मूर्तियां हैं, जिनमें श्वेताम्बर स्थलों की भांति, गजारूढ़ यक्ष को द्विभुज एवं पात्र (या फल) एवं धन के थैले से युक्त दिखाया गया है। एलोरा में यक्षों, नागों, गंधर्वो, किन्नरों आदि का भी रूपायन हुआ है। एलोरा की जैन गुफाओं में लक्ष्मी और पार्श्वनाथ की मूर्तियों में नागराज धरणेन्द्र के शिल्पांकन के अतिरिक्त इक्षुधनु और पुष्पशर से युक्त कामदेव की भी एक मूर्ति २९० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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