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की शारीरिक रचना से उसका मन कुढ़ता था।
___ इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन एवं बौद्ध दोनों ही संघों में प्रवजित होने के लगभग समान कारण थे। पति, पुत्र, पुत्री, भाई अथवा स्नेही जनों की मृत्यु के कारण उनमें संसार के प्रति वैराग्य की भावना उतपन्न हो जाती थी और ज्ञानप्राप्ति तथा आध्यातिमक भावना से प्रेरित होकर भी प्रवज्या ग्रहण की जाती थी।
संदर्भ:
१. स्थानांक १०/७१२, ३/१५७, टीका, भाग पांच, पृ. ३६५-६६ २. उत्तराध्ययन, २२वां अध्ययन ३. वही, १४वां अध्ययन ४. उत्तराध्ययन नियुक्ति, पृ. १३६-४० ५. आवश्यक नियुक्ति १२८३, बृहत्कल्प भाष्य, पंचम भाग ५०९९ ६. आवश्यक चूणि, द्वितीय भाग, २०४-०७ ७. उत्तराध्ययन नियुक्ति, पृ. १८१ ८. आवश्यक चूर्णि, प्रथम भाग, पृ. ५२६-२७ ९. आवश्यक चूणि, द्वितीय भाग, पृ. १८३, कल्पसूत्र २०८ १०. ज्ञाताधर्मकथा १/१४ ११. वही १/१६ १२. अन्तकृतदशांग, आठवां वर्ग १३. वही, पंचम वर्ग १४. उत्तराध्ययन टीका, द्वितीय भाग, पृ. २९-३० १५. थेरीगाथा, परमात्थदीपनी टीका, ५१ १६. वही, ६३ १७. वही, २८,२९ १८. वही, ३३ १९. वही, १२ २०. भिक्षुणी विनय, १५८ २१. थेरीगाथा, परमात्थदीपनी टीका, ४६ २२. वही, ४७ २३. थेरी गाथा, परमात्थदीपनी टीका, ६४
२४. वही, ६६ पण २२, अंक ४
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