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________________ भूतदत्ता, सेणा, रेणा । सातों बहनों ने अपने भाई को प्रव्रज्या ग्रहण करते हुए देखकर जैन भिक्षुणी संघ में प्रवेश लिया था। ज्ञाताधर्मकथा में पोट्टिला" तथा सुकुमालिका" का उदाहरण मिलता है। जिन्होंने अपने प्रति पति के प्रेम में कमी होने के कारण प्रव्रज्या ग्रहण की थी। उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि सामान्यतया नारियां अपने संरक्षक (पति, पुत्र, भाई अथवा अन्य कोई) की मृत्यु या उसके प्रव्रज्या ग्रहण कर लेने के उपरान्त स्वयं भी प्रवजित हो जाती थीं। अन्तकृतदशांग में उल्लिखित कालीसुकाली आदि के उदाहरण द्रष्टव्य हैं। इसके अतिरिक्त बहुत-सी स्त्रियां विद्वान् साधुओं के धर्मोपदेश को सुनकर संन्यास-जीवन का आश्रय ग्रहण करती थीं। अंतकृतदशांग में जम्बूकुमार की पत्नियों तथा कृष्ण-वासुदेव की पत्नियों" का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अरिष्टनेमि के उपदेश से प्रभावित होकर प्रवज्या ग्रहण की थी। केवल धनी तथा उच्च वर्ग स्त्रियों ने ही नहीं बल्कि नर्तकियों तथा वेश्याओं ने भी भिक्षुणियों के कठोर जीवन का आदर्श ग्रहण किया था। उत्तराध्ययन टीका" में गणिका कोशा का नाम मिलता है, जिसने स्थूलभद्र नामक विद्वान् भिक्षु के सम्पर्क में आकर भिक्षुणी संघ में प्रवेश लिया था। इसी प्रकार अत्यधिक सुन्दरता के कारण मल्लिकुमारी वीतराग बनीं, जिन्हें श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार १९वां तीर्थकर माना गया है, उनसे विवाह के लिए अनेक राजा लालायित हो उठे थे । इस प्रकार कभी परिस्थितिवश और कभी उपदेश या स्वप्रेरित वैराग्य से प्रव्रज्या ग्रहण की जाती थी। बौद्ध संघ जैन संघ में प्रवजित होने के जो कारण मिलते हैं लगभग वैसे ही कारण बौद्ध संघ के सन्दर्भ में भी कहे जा सकते हैं। थेरी गाथा में उल्लेख है कि पटाचारा के उद्योग से ५०० स्त्रियों ने भिक्षुणी बनकर उसका शिष्यत्व ग्रहण किया था। इन सभी को सन्तान वियोग का दुःख सहन करना पड़ा था। इसी प्रकार वाशिष्ठी तथा कृशा गौतमी को" पुत्र-वियोग के कारण तथा सुन्दरी को अपने छोटे भाई की मृत्यु के कारण संसार से वैराग्य उत्पन्न हुआ था और इन सभी ने बौद्ध संघ में प्रवेश लिया था। कुछ स्त्रियों ने अपनी प्रिय सखियों की मृत्यु से दुःखी होकर प्रव्रज्या ग्रहण की थी। श्यामा कौशाम्बी नरेश उदयन की पत्नी श्यामावती की प्रिय सखी थी। श्यामावती की मृत्यु के बाद श्यामा ने बौद्ध-संघ में प्रवज्या ग्रहण कर ली। उब्बिरी" ने जो अपनी एकमात्र कन्या की मृत्यु हो जाने से दु:खी थी, बुद्ध के उपदेश को सुनकर बौद्ध-संघ में प्रव्रज्या ग्रहण की थी। स्त्रियां पति के प्रश्नज्या ग्रहण कर लेने पर स्वयं भी प्रवजित हो जाती थीं। धम्मदिन्ना" ऐसी ही भिक्षुणी थी, जिसने पति के प्रव्रज्या ग्रहण कर लेने पर भिक्षुणीसंघ में प्रवेश लिया था। सुदिन्निका ने पति की मृत्यु के बाद देवर के कलुषित विचारों को समझकर प्रव्रज्या ग्रहण की थी। बस २२, बंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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