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१८. श्री महाभद्र प्रभु
देवसेन
उमा
विजया
गज
।
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खण्ड २२, अंक ४
१९. श्री देवयश प्रभु सर्वानुभूति गंगा
सुसीमा
-
२०. श्री अजितवीर्य प्रभु राजपाल
कननी
वीतशोका
चन्द्रमा ।
। स्वस्तिक ।
| ।
पश्चिम अर्ध पुष्कर के विद्युन्माली मेरु से पश्चिम महाविदेह की पचीसवीं वप्रा विजय पश्चिम अर्धपुष्कर के विद्युन्माली मेरु से पूर्व महाविदेह की नौवीं वत्स विजय पश्चिम अर्ध पुष्कर के विद्युन्माली मेरु से पश्चिम महाविदेह की चौबीसवीं नलिनावती विजय
– मुनि गुलाबचंद्र ‘निर्मोही'
अग्रगण्य मुनि (श्री श्वेताम्बर जैन तेरापंथ महासंघ में गणाधिपति तुलसी एवं
आचार्य श्री महाप्रज्ञ के आज्ञानुवर्ती शिष्य)
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