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________________ नव कुरुक्षेत्र निर्माण-प्रशस्ति परमेश्वर सोलंकी श्री आर. सी. मजूमदार ने बम्बई ब्रांच ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल (वोल्यूम ३४.३५) में एक प्रशस्ति प्रकाशित की थी। उस प्रशस्ति में नव कुरूक्षेत्र निर्माण का उल्लेख है । यह प्रशस्ति कोति-स्तम्भ के रूप में है और 'वट लोंग काउ' (Vat Luog Kau) नामक स्थान पर है जो कम्बोडिया के उत्तर में स्थित लाओस देश में है । वहां अनेकों मंदिर, देव प्रतिमाएं और शिलालेख भी बताए गए __ प्रशस्ति पर कोई संवत्सर उत्कीर्ण नहीं है किंतु महाराजाधिराज श्री देवानीक का नाम उत्कीर्ण है जो संभवतः वहां गये किसी कुरूवंश का प्रतापी राजा है। प्रशस्ति में उसे युधिष्ठिर, इन्द्र, धनञ्जय और इन्द्रद्युम्न के सदृश यशस्वो बताया गया है । उसने अनेकों यज्ञ किए और यह सोच कर कि कुरूक्षेत्र में रहने वाले, वहां स्नान करने वाले और वहीं मृत्यु को प्राप्त होने वाले पुण्यभाक् होते हैं, उसने घट लौंग काउ में, मेकांग नदी के पर्वतीव आंचल में, नव कुरूक्षेत्र का निर्माण कराया और उसकी प्रशस्ति में लिखवाया कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊंगा, मैं कुरूक्षेत्र में बसता हूं। कुरुक्षेत्र का माहात्म्य कुरुक्षेत्र का निर्माण सोमवंशी राजा कुरू ने किया था जो महाराजा युधिष्ठिर से सोलह पीढ़ी पूर्व हुआ । महाभारत-युद्ध के बाद इस क्षेत्र का पुण्य क्षीण होने लगा और यह शनैः शनैः महिमा-गरिमाहीन होता रहा। वामन पुराण (२२.५९) में इसका इतिहास दिया है आद्यैषा ब्रह्मणो वेदिस्ततो रामहृदः स्मृतः । कुरूणा च यतः कृष्टं कुरूक्षेत्रं ततः स्मृतम् ।। कि पहले यह ब्रह्मवेदि था। जैसे पुष्कर ब्रह्मवेदि था। बाद में द्रुमकुल्य समुद्र के सूखने पर यहां रामहृद (समन्तपंचक) बना और कालान्तर में कुरू ने इसे आवास योग्य बनाया तो यह कुरूक्षेत्र कहा गया। शतपथ ब्राह्मण और जाबालोपनिषद् में इसे देवयजन का स्थान कहा गया है । शंख स्मृति १४.२९) में वाराणसी, महालय और कुरुक्षेत्र को एक समान बताया गया है-वाराणस्यां कुरुक्षेत्रे भृगतुंगे महालये। किंतु पद्मपुराण (स. खं. ११.१४) के उल्लेख से यह कम प्रभावशील बन गया लगता है कुरूक्षेत्र महापुण्यं यत्र मार्गोऽपि लक्ष्यते । अद्यापि पितृतीर्थ तत्सर्व काम फल प्रदम् ॥ पण २२, बंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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