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________________ हो जाएगी। पूरे वर्ष देखने से पूरे राशि चक्र से परिचय संभव है । राशि की आकृतियों की पहिचान, क्रांति-वृत के सापेक्ष, निर्धारित की जाती है । राशियों की आकृतियां परिभाषित करने के लिये उन तारों को लिया गया जो नीचे लिखी शर्तें पूरी करें । (१) तारे चमकदार हों । वेधकर्ता के लिये यह आवश्यक था आकृति में चमक वाले तारे लिये जाए क्योंकि उन्हें देखना, होगा । (२) कुछ तारे क्रांतिवृत पर हों क्योंकि आकाश में वृक्ष, मकान आदि की पृष्ठभूमि ( Back ground) नहीं है अतः सूर्य के भ्रमण के मार्ग (क्रांतिवृत) की पहिचान उस पर पड़ने वाले तारों से ही होगी । कि राशि की पहिचानना सरल ऊपर दी गई स्थितियों में से नं. (१) स्थिति तो सरलता से ही आलापित (satisfied) की जा सकती है । परन्तु सूर्य की कक्षा पर कौन कौन से तारे हैं ? यह नंगी आंख द्वारा वेध करना असंभव है । सूर्य के चाक- चाक्य के तारे देखे नहीं जा सकते। देखने की जिद्द करेंगे तो देखने वाले ही है। सूर्य के मार्ग का दर्शन केवल सूर्य ग्रहण के समय ही राशि के क्रांतिवृत अथवा उसके आसन्न तारों को जानने की लिये वर्षो तक की प्रतीक्षाएं करनी पड़ेंगी। इन सभी अध्ययनों के पिछले रिकार्ड सुरक्षित और राशिचक्र जानने में सैकड़ों वर्ष लगे होंगे । कारण उसकी कक्षा के का अन्धा होना निश्चित संभव है । अत: प्रत्येक सूर्य ग्रहणों रखने होंगे ऐसी स्थिति में प्रश्न हो सकता है कि क्या राशियों के कभी विषम विभाजन भी रहे हैं ? इस तथ्य की पड़ताल करने के लिये पहिले यह आवश्यक है कि चन्द्रमा के मार्ग ( नक्षत्र - चक्र) के विभाजन एवं अंकन पर विचार किया जाए । चन्द्रमा के मार्ग का विभाजन व अंकन आजकल विषुववृत्त (नाड़ी वृत ) का अंकन पृथ्वी के अक्ष भ्रमण से किया गया है । इसके बराबर विभाजन हुए क्योंकि पृथ्वी की अक्ष भ्रमणगति समरूप है । उसे आजकल घण्टा, मिनट में अंकित किया गया है। इसके लिये प्रारम्भ बिंदु वसन्तसम्मात बिंदु ( वह बिंदु जहां सूर्य २१ मार्च को होता है) लिया गया है । ध्यान रहे ज्यॉग्राफी ने पृथ्वी के विषुववृत ( Eduator) को ग्रीन्विच से समरूप विभागों में अंकित किया जाता है और ज्योतिष में खगोलीय विषुववृत ( जो कि पृथ्वी के नाड़ी वृत का आकाश में विस्तारित रूप ही है) का अंकन ग्रीन्विच से नहीं अपितु ज्योतिषीय शून्य बिंदु (वसंतसंपात ) से किया जाता है । भारतीय परम्परा में चन्द्रमा की कक्षा को अंकित करने की परिपाटी रही है । चन्द्रमा की कक्षा पतली लीह की तरह नहीं, अपितु एक पहिये की तरह है । चन्द्रमा राहु के भगणकाल १८ वर्ष में इस लीह के अन्तर्गत तारों से योग (युति) करता रहता है क्योंकि चन्द्रमा की कक्षा धीरे-धीरे क्रांतिवृत्त से ५ उत्तर व दक्षिण की ओर खिसकती रहती है । चन्द्रमा की गति भी उच्च की स्थिति के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है । इसकी गति अधिकतम १५ अल्पतम गति ११० के करीब है । अतः चन्द्रमा खण्ड २२, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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