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४. ६-१३-१६ में ऋषियों द्वारा नहुष को शाप दिया जाना जिससे सर्प गति में .. उनका जन्म होता है।। ५. ६-१७-१५-पार्वती द्वारा चित्तकेतु को शाप । ६. ८-२०-१५ -शुक्राचार्य द्वारा बलि को शाप । ७. ९-७-५--पिता और गुरु के द्वारा त्रिशंकु को शाप । ८. ९-७-७ विश्वामित्र और वशिष्ठ का एक दूसरे को प्रतिशाप ।
९. ९-१६-२२ देवयानी का कचद्वारा शापित होना । १०. ९-१८-३६-शुक्राचार्य द्वारा ययाति को शाप की प्राप्ति । ११. १०-१०-२१-नलकुबर मणिग्रीव को ऋषि नारद का शाप । १२. ११-७-३---ब्राह्मण शाप से यदुवंश का विनाश । १३. १-१८-३७ ----शमीक पुत्र के द्वारा राजा परीक्षित् को शाप । १४. ३-३-२४ --ब्राह्मणों द्वारा यदु और भोज को शाप । (ii) वरदान -श्रीमद्भागवतीय आख्यानों में नैक स्थलों पर वरदान प्रसंग
आया है। भगवान् अपने भक्तों को वरदान देकर प्रसन्न करते हैं ।
निम्नलिखित वरदान प्रमुख हैं१.३-२४-१६-१९----ब्रह्मा द्वारा कर्दम को वरदान । २.४-९-२०-ध्रुव को ध्रुवलोक गमन का वरदान । ३. ४-१२-८-९-कुबेर द्वारा ध्रुव को वरदान । ४. ८-९-२४,३२-दुर्वासा से कुन्ती को देवावाहनी विद्या की प्राप्ति । ५. ९-५-१३ -दुर्वासा द्वारा अम्बरीष को आशीर्वाद । ६. १०-१०-४२-नबकुबर मणिग्रीव को भगवान् से भक्ति की प्राप्ति ।
७. १०-५९-४९--ब्राह्मणों द्वारा श्रीकृष्ण को वरदान । सन्दर्भ : १. श्रीमद्भागवत महापुराण -१.७.६-७ २. तत्रैव-३.२५.३२-३३
१.८.४२ ३.२५.४० ३.२५.१९ ७.५.२३
im : * or so
श्री मद्भागवत महापुराण ---१.२.१४ तत्रैव -१०.८६.४६
" १०.१०.३८ " ३.२७.२१-२३
" २.३.१९-२४ १३. " ९.४.१८-२०
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तुलसी प्रज्ञा
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