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________________ श्रीमद् भागवतीय आख्यानों का विवेचन (२) [हरिशंकर पाण्डेय श्रीमद् भागवत पुराण में आख्यान और उपाख्यानों की भरमार है । हर विषय के आख्यान यहां समुपलब्ध हैं और इन आख्यानों में विविधानेक विषयों का विवेचन प्राप्त होता है । भक्ति, स्तुति, अनुग्रह दर्शन ईश्वर, जीव, जगत्, दान, यज्ञ, राजधर्म, शाप, वरदान आदि की विस्तृत व्याख्या उपलब्ध होती है । इन विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया है : - आध्यात्मिक एवं लौकिक । (i) आध्यात्मिक इसमें अध्यात्म से सम्बन्धित विषय जैसे भक्ति, स्तुति, अनुग्रह, दर्शन आदि का विवेचन प्रधानरूप से रहता है । (क) भक्ति - श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना का मूल प्रयोजन भक्ति का विवेचन ही है । भगवान् नारद द्वारा उपदिष्ट होकर ऋषि ब्यास ने सांसारिक अनर्थों की शान्ति के लिए भगवत्भक्ति परक परमहंसों की संहिता श्रीमद्भागवत की रचना की, जिसके श्रवण मात्र से ही प्रेममयी भक्ति हो जाती है, जो जीव के शोक, मोह, और भय को नष्ट करने वाली है -- अनर्थोपशमं साक्षाद्भक्तियोगमधोक्षजे । लोकस्याजानतो विद्वांश्च सात्वतसंहिताम् ॥ यस्यां वै श्रूयमाणायां कृष्णे परम पुरुषे । भक्तिरुत्पद्यते पुंसः शोकमोहभयापहा ॥' आख्यानों में दो प्रकार की भक्ति दष्टिगोचर होती है । (i) भजात्मिका किंवा भजन अथवा सेवा स्वरूपा । (ii) भञ्जात्मिका किंवा भव बन्धन विनाशिका | प्रथम की निष्पत्ति 'भजसेवायाम्' से क्तिन् प्रत्यय करने पर होती है जिसका अर्थ है— गुणकीर्तन वन्दन, सेवन, भजन आदि और द्वितीय 'भजो आमर्दने' धातु से करण अर्थ में क्तिन् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होती है, जिसका अर्थ भवबंधन विनाशिका भवबाधाप्रणाशिका आदि है । दोनों प्रकार की भक्ति एक दूसरे की सहायिका है। एक के बिना दूसरी अपूर्ण है । कहीं भक्ति भजन से प्रारंभ होती है तब भव बन्धन का विनाश होता और कहीं भव भय भंजन से प्रारंभ होकर भजन में पर्यवसित हो जाती है । सत्त्वमूर्ति श्री हरि के प्रति स्वभाविक प्रवृत्ति को भक्ति कहते हैं जो कर्म संसार रूप लिंग शरीर को शीघ्र ही भस्म कर देती है, जैसे जठरानल भुक्त भोजन को । खण्ड २१, अंक ३ ३३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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