________________
जाता है और वह स्थिति शांति तथा एकता की बजाय युद्ध की प्रेरणा होती है ।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त वैचारिक भिन्नताएं विस्तारवादी नीतियां, व्यापारिक एवं सीमा-विवाद, अस्त्र-शस्त्र आदि भी अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के प्रमुख कारण बनते हैं । कुण्ठा, अन्याय, आक्रामकता व परमाणु अस्त्र-शस्त्रों का निरन्तर भय संघर्ष के लिए जिम्मेदार कहे जा सकते हैं। फायड ने व्यक्ति के अन्दर एक ऐसी अचेतन शक्ति की परिकल्पना की है जिसके कारण वह युद्ध का स्वागत करता है । उसका मत है कि निराशा के कारण मनुष्य एक ऐसे अवरुद्ध आक्रमण के लिए प्रेरित होता है जो अपनी अभिव्यक्ति के लिए एक ऐसा मार्ग ढूंढने का प्रयत्न करता है जो सामाजिक दृष्टि से स्वीकृत हो और वह उसके अहं को भी स्वीकार्य हो।
सामान्य रूप से निराशा को उत्पन्न करने वाली तीन मुख्य स्थितियां हैं
१. प्रतिकूल वातावरण द्वारा प्रस्तुत बाह्य बाधाएं, जो व्यक्ति को अपने लक्ष्य की प्राप्ति से रोकती है।
२. मनुष्य के पराहं द्वारा प्रस्तुत आंतरिक बाधाएं जो उसकी अस्वीकार्य प्रवृत्तियों की उन्मुक्त अभिव्यक्ति को रोकती है, तथा ।
३. दो पारस्परिक विशिष्ट प्रवृत्तियों का एक साथ उत्प्रेरण, जहां पर एक व्यक्ति की संतुष्टि से दूसरे व्यक्ति के तात्कालिक संतोष में बाधा पड़ती है ।
उपर्युक्त तीनों ही स्थितियां व्यक्ति की कुण्ठा के लिए जिम्मेदार हैं जो अन्ततः संघर्ष को जन्म देती हैं।
सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में किया जाने वाला अन्याय भी संघर्ष की प्रक्रिया को जन्म देता है। अन्याय की निरन्तरता प्रतिशोध व विवादों को जन्म देती है जिससे व्यक्ति, समाज व राष्ट्र संघर्षरत हो जाता है।
कुण्ठाग्रस्त व्यक्ति प्रतिक्रिया स्वरूप आक्रामक हो जाता है तथा आक्रामकता ही उसका व्यवहार व आदत बन जाती है। सामाजिक व राजनैतिक संघर्षों में आक्रामकता एक प्रमुख कारण बनती है ।
इसी प्रकार आणविक अस्त्रों ने अपने प्रारंभिक काल से ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में उथल-पुथल शुरू कर दी थी। परिणाम स्वरूप उस समय की महाशक्तियों के बीच परस्पर अविश्वास की वृद्धि और शीतयुद्ध को प्रोत्साहन मिला । आगविक शक्ति से सम्पन्न होने की लालसा ने ही शस्त्रीकरण की दौड़ को जन्म दिया तथा सैनिक गुटों के निर्माण का भी एक कारण बना। एशिया और अफ्रीका के देश भी आणविक कूटनीति से बच न सके तथा विश्व के देशों की सैनिक व्यूह रचना ही बदल गई।
आणविक अस्त्रों की कूटनीति ने विश्व की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव डाला। विकासशील राष्ट्रों की राष्ट्रीय आय का एक बड़ा हिस्सा शस्त्रीकरण में खर्च होने लगा। विश्व का सैनिक खर्च जो प्रारम्भ में २५ विलियन डॉलर था, आज यह ५०० विलियन डालर तक पहुंच गया है तथा सन् २००० तक इसके ९४० विलियन डालर
खण्ड २१, अंक २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org