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राजः त्वंदं राजस्त्वंद, हरिः चंद्र हरिश्चंद्र इत्यादिक सिद्ध शब्द ह, निपात थकी संबंध ॥११॥
-विसर्ग संधि दोहा ९ से ११ सारस्वत व्याकरण में पंच संधि के अन्तर्गत जो उदाहरण आए हैं, जयाचार्य ने उनका तो प्रयोग किया ही है साथ में अनेकों नए उदाहरण दिए हैं। “यमा यपेऽस्य वा" "पदान्ते वा" इन दो सूत्रों के २९ उदाहरण दिए हैं। अधिकांश नए उदाहरण
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१ त्वं करोषि क पर छतै, त्वङ करोषि होय । २ तं तनोति त पर छत तन्तनोति न जोय ॥४४॥ ३ सं यंता य पर छत, सय्यंता य सार । ४ तं राघवं र पर छत, ताराघवं र धार ॥४५॥ ५ रं रम्यते र पर छत, रारम्यते र होय ।
रि लोपे दीर्घ सूत्र करि र लोप दीर्घ सुजोय ॥४६।। ६ यं नकार न पर छतं यज्ञकार न होय । ७ यं णकार ण पर छत यण्णकार ण जोय ॥४७॥ ८ तं ननीति न पर थकां, तन्ननीति न होय । ९यं डकार ड पर थकां यड्डकार ड जोय ॥४८॥
सं मानयति मकार पर, सम्मानयति मकार सं झपति चवर्ग पर, सञ्झपति सु नकार ॥४९।। तं ढोकते ट वर्ग पर, तण्डोकते णकार सं धमति त वर्ग पर, सन्धमति सु नकार ॥५०॥ संघर्षति क वर्ग पर, सङघर्षति डकार सं भमति प वर्ग पर, सम्भवति सु मकार ॥५१॥ जं जय्यते च वर्ग पर, जञ्जय्यते ञ् होय सं दीयते ट वर्ग पर, सण्डीयते ण होय ॥५२॥ दं दश्यते तु पर थकां, दन्दश्यते नकार जं गम्यते कु पर थकां, जङ्गम्यते ङकार ॥५३॥ बं बमीति पु पर थकां, बम्बमीति म होय । सं खनति कु पर थकां, सङ्खनति ङ जोय ॥५४॥ पं फलति पु पर थकां, पम्फलति म सवर्ण सं छादयति चु परः, सञ्छादयति न कर्ण ॥५५॥ कंठः ट वर्ग पर थकां, कण्ठः सवर्ण णकार कंथा तवर्ग पर थकां, कन्था सवर्ण नकार ॥५६॥ संचरति च पर थकां, सञ्चरति न सवर्ण घंटा ट वर्ग नौं सवर्ण, घण्टा णकार धर्ण ॥५७।।
तुलसी प्रशा
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