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प्रबल पुरुषार्थ से आत्मा का दर्शन किया।
इस प्रकार हरिकेशबल आख्यान में जैन दर्शन के तत्त्वों का सूत्रात्मक निदर्शन उपलब्ध होता है। सन्दर्म: १. वृहत्कल्प १, गाथा १९० २. आवश्यक नियुक्ति ३. पाणिनी, अष्टाध्यायी ३.३.११७ ४. हलायुधकोश पृ. सं. १४७ ५. उत्तरज्झयणाणि १२।१ ६. बही १२१९ ७. वही १२।२३ ८. वही १२४३ ९. वही १२१४४ १०. वही पृ० २८७-२९३
१२. वही १३. मुण्डकोपनिषद १.१.८ १४. भगवद्गीता अध्याय १७ १५. उत्तरज्झयणाणि १२१४४ १६. दसर्वकालिक ११ १७. उत्तरज्झयणाणि १२।३२
द्वारा गौतम ज्ञान शाला, लाडनू
तुलसी प्रज्ञा
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