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________________ आख्यान का विवेचन अवधेय है जिसमें आख्यान का अर्थ, प्रयोजन, विवेच्य आख्यान की कथावस्तु, पात्र-चित्रण, कथोपकथन भाषा-शैली, समाज संस्कृति एवं दार्शनिक तथ्यों पर प्रकाश डालने का विनम्र प्रयास किया गया है-- १. आख्यान का अर्थ और प्रयोजन आख्यान शब्द आङ् उपसर्ग ख्या प्रकथन (अदादिगणीय धातु) से करणाधिकरणयोश्च सूत्र से करण अर्थ में ल्युट् प्रयत्न करने पर निष्पन्न हुआ है। विभिन्न कोशकारों ने प्रकथन, निवेदन, कथा, प्रसंग, प्रतिबचन, प्रत्युत्तर, पुराण, इतिहास, चरित्र, कथांश और पूर्व वृतोक्ति आदि को आख्यान शन्द के समानार्थक माना है । 'हलायुध' के अनुसार आख्यान शब्द का अर्थ कथन होता है। आचार्य हेमचन्द्र और विश्वनाथ ने कथा के अन्तर्गत ही आख्यान को रखा है। आख्यानों के माध्यम से धर्म, ज्ञान, भक्ति, कर्म, पाप-पुण्य, शाप-वरदान, युद्ध, दान, यज्ञ आदि कर्मों का विवेचन मिलता है। जिनके माध्यम से ज्ञान, भक्ति, तत्त्व एवं दर्शन के अनसुलझे प्रश्नों का समाधान भी सहजतया हो जाता है । २. आख्यान का वस्तु-विश्लेषण हरिकेशबल मुनि से संबोधित होने के कारण इस अध्ययन का नाम 'हरिकेशीय' है। हरिके शबल मुनि पूर्वजन्म में सोमदेव नाम के ब्राह्मण थे। उन्हें जाति का मद था। मुनि बनने के पश्चात् भी जाति का अहंकार दूर नहीं हुआ। जाति-मद की अवस्था में काल-क्रम करने के कारण चाण्डाल कुल में उत्पन्त हुए। वहां इनका नाम हरिकेशबल था। मुमि बनने के पश्चात् हरिकेशबल मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए। बचपन की बात है। एक बार वे अपने साथियों के साथ खेल रहे थे। खेल-खेल में साथियों के साथ झगड़ने लगे। तब लोगों ने उन्हें खेल से हटा दिया। दूसरे बालक पूर्ववत् खेलते रहे । बालक हरिकेश बहीं खड़ा-खड़ा देखने लगा। इतने में एक भयंकर सर्प निकला। लोगों ने उसे देखा । पत्थर से मारकर हटा दिया। थोड़ी देर बाद एक अलसिया निकला। लोगों ने उसे कुछ नहीं कहा । इन दोनों घटना-प्रसंगों को देखकर हरिकेश के मन में आया-यदि मैं सर्प की तरह काढूंगा तो सब मुझे काटेंगे ही और अपने मार्ग से हटायेंगे ही। मुझे अपने आपको बदलना चाहिए। आख्यान में चार पात्र हैं। हरिकेशबल मुनि, यक्ष, सोमदेव ब्राह्मण और भद्रा। इसके अतिरिक्त अन्य पात्र राजा, राजपुरोहित मादि हैं। इनका चरित्र-चित्रण इस प्रकार हैं३. पात्र चित्रण(क) हरिकेशबल मुनि हरिकेशबल मुनि इस आख्यान के मुख्य पात्र हैं । जिन्हें हम श्रमण परम्परा के श्रेष्ठ मुनि कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि मुनि में होने वाले चारित्रिक गुण उनमें विद्यमान हैं । तभी तो कहा है सोवागकुलसंभूओ गुणत्तरधरोमुणी। हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइदिओ। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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