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मरुमण्डल की धारानगरी: भीनमाल
राब गणपतसिंह
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धन-कुबेरों का नगर भीनमाल कभी साहित्य जगत में मरुमंडल की "धारानगरी" के नाम से पहचाना जाता था। विख्यात ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त ने वि० सं० ६८५ में यहां "ब्रह्मस्फुट सिद्धांत" की रचना की थी। संस्कृत के प्रसिद्ध महाकवि माघ का जन्म-स्थान होने के साथ-साथ, डॉ० ओझाजी के अनुसार यह नगर विद्या का एक पीठ भो था।
ईसा की दसवीं सदी की अंतिम चौथाई में जब वहां परमारों का अधिकार हुमा, तो मालवा का "धारा-नगर" भी विद्वानों के शरण-स्थल का गौरव अजित कर चुका था। राजा भोज (परमार) के राजत्व-काल में वह नगर शीर्षस्थ हुआ और विद्वजनों की खान का पर्यायवाची हो गया । कालान्तर में एक लम्बी काल अवधि तक भीनमाल को भी गुणीजन "धारा" के अलंकार से सम्बोधित करते रहे। 'शिशुपाल वध'-काव्य का रचना स्थल
वि० सं० ६८२ बसन्तगढ़ (सिरोही)-शिलालेख सूचित करता है कि उस समय यह प्रदेश वर्मलात राजा के अधिकार में था और आबू तथा उसके आस-पास का इलाका उस राजा के सामन्त राज्जिल के आधीन था। महाकवि माघ ने अपनी कृति शिशुपाल बध व अन्य कुछ फुटकर रचनाओं में अपना वंश वर्णन किया है, जिसके आधार पर विदित होता है कि उसके पिता का नाम दत्तक तथा पितामह का नाम सुप्रभदेव था, जो वर्मलात राजा के सर्वाधिकारी (मुख्यमंत्री) रहे। डा. ओझाजी की मान्यता है कि यह वर्मलात भीनमाल का राजा होना चाहिए।' जैन महाकवि धनपाल
सं० १०८१ में जब किराडू के दुर्लभराज परमार ने भीनमाल के शोभित चौहान पर चढ़ाई की, तो व्यथित होकर जैन महाकवि ने भीनमाल का परित्याग कर दिया * और वे सांचोर (सत्यपुर) मा गये।
उसके बाद भी धारा नगरी का वर्चस्व बना रहा। वि० सं० ११७६ के सेवाड़ी ताम्रपत्र में शोभित या सोही को "धारापति" सम्बोधित किया गया है (श्लोक ५)। यह धारा भी भीनमाल ही है। डा० आर० बी० सिंह ने सुझाव दिया है कि जब परमार नरेश मुंजराज कल्याणी के चालुक्यों के विरुद्ध दक्षिण के अभियान में संलग्न था, तब चौहानों ने थोड़े समय के लिए ही सही, मालवा की राजधानी धारा पर सत्ता स्थापित की। यह उल्लेख भी भीनमाल से संबंध रखता है । "धारा" बारहवीं शती
खण्ड २१, अंक २
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