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________________ शरीर के साथ ही उच्छेद को प्राप्त होता है । दृष्ट- धर्म - निर्वाणवादी मानते थे कि प्राणी का इसी संसार में देखते-देखते निर्माण हो जाता है और ऐसा पांच कारणों से होता है भोग भोगता है, १. चूंकि यह आत्मा पांच काम-गुणों में फंसकर सांसारिक इसलिए इसी संसार में वह निर्वाण प्राप्त कर लेता है । २. यह आत्मा कामों से पृथक् रहकर प्रथम ध्यान को प्राप्त कर विहरता है, इसलिए इसी जन्म में वह निर्वाण पा लेता है । ३. वितर्क और विचारों के शान्त हो जाने से द्वितीय ध्यान को प्राप्त कर यहां निर्वाण प्राप्त कर लेता है । ४. उपेक्षायुक्त, स्मृतिवान् और सुखविहारी होते तीसरे ध्यान को प्राप्त हो यहीं निर्वाण को प्राप्त कर लेता है । ५. यह आत्मा सुख और दुःख के नष्ट होने से, सौमनस्य और दौर्मनस्य के अस्त हो जाने से चौथेध्यान को प्राप्त कर यहीं निर्वाण प्राप्त कर लेता है । बुद्धयुगीन ब्राह्मण इन्हीं बासठ दार्शनिक धारणाओं में फंसे दुःख और वेदनाओं के अन्त को नहीं समझ पा रहे थे। ऐसा ज्ञात होता है । पाद-टिप्पणी १. दीघनिकाय - अम्बट्ट सुत्त, तेविज्ज सुत्त, इत्यादि २ . वही विज्ज सुत्त ३. संयुक्त निकाय (मूल) I पृ. ७६; अंगुत्तर निकाय II पृ. ४२ सुत्त निपात-ब्राह्मण धम्मिक सुत्त ४. दीघनिकाय (मूल) I पृ. १०९; अंगुत्तर निकाय I पृ. ४१; संयुक्त निकाय I पृ. ७०; सुत्तनिपात २.७,३.४,५.१ ५. दीघनिकाय पृ. ४८ ६. वही पृ. १-१४ खण्ड २१, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only - ए-१७, मगध विश्वविद्यालय बोधगया (गया) ८२४२३४ ११९ www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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