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का स्वार्थ है। उच्च वर्ग ऐसे किसी संकट को मोल नहीं लेना चाहता था जिससे उनका सम्मान, प्रभुत्व व जीविका छिन जाय । अत: शम्बूक का वध कर उस जड़ को ही नष्ट कर दिया गया जो सिर उठा रही थी और इसका दोष अपने पर न आये इसके लिए अप्राकृत आकाशवाणी को आधार बनाया गया।
निष्कर्षतः 'उत्तररामचरित' में पत्नी के परित्याग के सम्बन्ध में पुरूष की निरंकुश सत्ता और निम्न वर्ण की दयनीय दशा आदि प्रश्न मुख्य हैं। नाट्य की कथावस्तु लोक से सम्बद्ध होती है और समाज के प्रति जागरूक नाटककार वस्तु में समकालीन समाज की स्थितियों किंवा समस्याओं को अत्यन्त बारीकी से गुंफित करता है। भवभूति ने पुराख्यान के फलक पर नई चुनौतियों को उकेर कर जनमानस को आन्दोलित किया है।
-व्याख्याता, संस्कृत-विभाग, आर्टस् & कॉमर्स कॉलेज, भिलोड़ा, जिला-साबरकांठा, गुजरात-३८३१४५
संदर्भ: १. उ० रा० च० १, १२, पृ० ३९ २. वही, प्र० अं०, पृ० ९६ ३. दुर्मुख :-हा कहं दाणि अन्तरेण ईरिसं अचिंतणिज्जं जणाववादं देवस्स कह __ इस्स । वही, प्र० अं०, पृ० ९६ । ४. वही, १.४०, पृ० १०२। ५. वही, १.४३, पृ० १०५ । ६. धर्मशास्त्र का इतिहास, द्वि० भाग, पृ० ६०३ । ७. उ० रा० च०, प्र० अं०, पृ० १०९ । ८. रामः-तत्किमस्पृश्य: पातकी देवीं दूषयामि । (इति सीतायाः शिरः समुन्नय्य बाहुमाकृष्य)
-वही, प्र० अं०, पृ० ११३ ९. धर्मशास्त्र का इतिहास, द्वि० भाग, पृ० ६०२। १०. उ० रा. च०, ३.३२, पृ० ७३ । ११. वासन्ती-(समाश्वस्य) तत्किमिदमकार्यमनुतिष्ठितं देवेन ?
राम :--लोको न मृष्यतीति वासन्ती-कस्य हेतोः
खण्ड २१, अक १
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