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________________ रामराज्य के संदर्भ में 'उत्तररामचरित' का सामाजिक चिन्तन दिनेश चन्द्र चौबीसा 'उत्तररामचरित' की विश्व-प्रसिद्धि ने भवभूति को पंक्तिपावन, कवि-शिरोमणि कालिदास के समकक्ष बैठा दिया है। इस नाटक में राम का उत्तर चरित वणित है। भवभूति ने मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से ख्यात इतिहास वस्तु और तत्सम्बन्धी प्रचलित जीवन-वृत्त को नाट्य में गुंफित कर एक ओर अपनी प्रौढ़ प्रतिभा का परिचय दिया है, वहीं सामाजिक चिन्तन को रचना धर्मिता के साथ जोड़कर अनेक प्रश्नों को प्रखरता से उठाया है। उत्तररामचरित के राम नवाभिषिक्त राजा हैं। इस नवीन राजा के सामने प्रमुख रूप से दो वस्तुएं हैं :-- राज्य और जनता राज्य का कुशल संचालन एवं प्रजा का अनुरंजन हर नवीन राजा के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है। राम के लिए भी राज्य नया है। वे राज्य की स्थिरता एवं राज-पद की अक्षुण्णता के लिए कृत निश्चयी होते हैं और जनता की भावना का आदर करते हैं। प्रजा-पालन के कर्त्तव्य में अवरोधक बनने पर पत्नी तक को दांव पर लगा देने की बात करते है स्नेहं दयां च सौख्यं च यदि वा जानकीमपि । आराधनाय लोकस्य मुञ्चतो नास्ति में व्यथा ॥' राम ने राज्य में प्रजा के सुख-दुःख और नवीन राजा के प्रति उनके दृष्टिकोण को जानने के लिए दूतों को नियुक्त किया। नाटक के पहले अंक में राम ने दुर्मुख नामक अन्तःपुरचारी को नगर में गुप्तचर के रूप में भेजा है।' दुर्मुख सीता के विषय में अचिन्तनीय लोकापवाद को राम के सम्मुख प्रकट करता है। वे इस बात से परिचित हैं कि सीता निर्दोष है और वे यह भी जानते हैं कि स्त्री-चरित्र पर लाञ्छन लगाना लोगों की प्रवृत्ति है। फिर भी राम प्रजा की भावना का आदर करते हुए आसन्नसत्त्वा सीता के त्याग का मन ही मन निश्चय कर लेते हैं। सीता के चरित्र व निष्कलंकता से पूर्णत: परिचित राम, पतिव्रता स्त्री के सम्मान, उसके स्वाभिमान व सामाजिक प्रतिष्ठा की रक्षा नहीं कर सके हैं। वे सब कुछ जानते हुए भी अपराधी की तरह सीता को दंड देते हैं--- खंड २१, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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