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कुन्द-कुन्द की दृष्टि में आगम का स्वरूप
D] डॉ० नंदलाल जैन
कुन्द-कुन्द के ग्रन्थों को परमागम कहा जाता है। इसे समझने के लिये उनकी दृष्टि में आगम का क्या अर्थ था, यह जानना और परखना आवश्यक है। उन्होंने अपने ग्रन्थों में आगम के लिए विविध शब्दों का उपयोग किया है-स्वसमय, शास्त्र, जिनोपदेश, जिनशासन, केवलवचन, जिनमार्ग, वीरशासन, जिनसमाख्यात, जिनकथन, केवलीशासन, श्रुत, सूत्र आदि । अनुयोगद्वारसूत्र और तत्वार्थसूत्रभाष्य' आदि में आगम या श्रृत के चौदह समानार्थी शब्दों का उल्लेख आया है जिन्हें दो श्रेणियों में निरूपित किया जा सकता है :
१. श्रुत, सूत्र, उपदेश, आगम, शासन, जिनवचन, आप्तवचन, आज्ञा, शास्त्र २.ऐतिह्य, आम्नाय, प्रज्ञापना. सिद्धांत. ग्रन्थ
यह स्पष्ट है कि इनमें कुन्दकुन्द के पर्यायवाची प्रथम कोटि में आते हैं। इनके विषय में यह धारणा सही लगती है कि प्रारम्भ में ये शब्द व्युत्पत्तिपरक थे पर उत्तरकाल में इनमें से अनेक परम्परासूचक हो गये । ये सभी शब्द आगम की परिभाषा को विविध दष्टिकोणों से निरूपित करते है । कुन्दकुन्द ने आगमों के लिये "स्वसमय"२ शब्द भी प्रयुक्त किया है जो अपूर्व है । यदि समय का अर्थ "आत्मा" लिया जाये, तो आत्मज्ञान-परकता को आगम की विशेषता बताकर उन्होंने आगम के तत्व को सही रूप में प्रकट किया है । "आगम" की "समय-परकता' स्वीकृत होने पर अनेक समस्याएं स्वयमेव समाप्त हो जाती हैं । आगम का अर्थ
आगम के अनेक पर्यायवाची शब्दों का व्यावहारिक अर्थ लेना ही उपयुक्त होगा। प्रवचनसार' में कहा है कि आगम से अर्थ का निश्चय होता है, स्व और पर का ज्ञान होता है, तत्वों में श्रद्धा जागती है, संयम में प्रवृत्ति होती है, मूर्छा नष्ट होती है, एवं तदनुसारी आचरण से कर्मक्षय शीघ्रतर होता है । “आगम' शब्द गम ज्ञाने धातु में आ प्रत्यय से बनता है। इसका अर्थ चहुं ओर का, सभी प्रकार या परम्पराओं का निश्चित या यथार्थ ज्ञान होता है। इसमें परम्परागत और वर्तमान-दोनों ज्ञान कोटियां समाहित होती है।
आगम की महत्ता को प्रकट करते हुए कुंदकुंद ने बताया है कि चक्षु तीन प्रकार के होते हैं- इन्द्रिय चक्षु, अनिद्रिय चक्षु और आगमचक्षु । साधु का ज्ञान आगमचाक्षुष खंड २१, अंक १
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