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________________ अन्य ग्रन्थों से उदाहरण देकर बताया कि संस्कृत और प्राकृत का अभेदान्वय सम्बन्ध है । उन्होंने आशा प्रकट की कि सम्भागी अध्यापकगण, अध्येतावृन्द एवं विद्वान् इस व्याख्यानमाला के माध्यम से शौरसेनी प्राकृत का महत्त्व समझ सकेंगे। प्रो० उपाध्याय ने विद्यापीठ में स्वतंत्र एवं परिपूर्ण प्राकृत विभाग की आवश्यकता अनुभव करते हुए इसकी क्रियान्विति हेतु सक्षम प्रयास करने का आश्वासन भी दिया। क्ष्याख्यानमाला के प्रथम सत्र के अध्यक्ष प्रख्यात भाषाशास्त्री एवं समालोचक तथा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के भाषाविभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो० नामवरसिंह ने भाषावैज्ञानिक पृष्ठभूमि में प्राकृत के विशिष्ट महत्त्व को रेखांकित करते हुए बताया कि शौरसेनी प्राकृत भाषा से ही इस देश की अन्य क्षेत्रीय प्राकृतों, अपभ्रशों एवं आधुनिक बोलियों का विकास हुआ है। उन्होंने सावधान किया कि भाषायें किसी धर्म या जाति की नहीं होती है, वे हर किसी की सम्पत्ति होती हैं, अतः 'ब्राह्मणों को संस्कृत' या 'जैन शौरसेनी' जैसे प्रयोग बेहद संकीर्ण चिंतन है, तथा भाषिक मानदण्डों के कतई विरुद्ध हैं। दो दिन की इस व्याख्यानमाला के प्रमुख वक्ता डॉ. लक्ष्मीनारायण तिवारी निदेशक, भोगीलाल लेहरचन्द भारतीय विद्या संस्थान, नई दिल्ली ने अपने दो वैदुष्यपूर्ण सारगर्भित व्याख्यान प्रदान किये । 'जैनधर्म द्वारा लोकभाषा की प्रतिष्ठा' विषयक अपने प्रथम व्याख्यान में डॉ. तिवारी ने देश के भाषायी, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं भाषावैज्ञानिक परम्परा का विशद परिचय देते हुए 'लोकभाषा' का स्वरूप एवं महत्त्व रेखांकित किया तथा बताया कि जैनाचार्यों ने लोकभाषा को अपने साहित्य में अपनाकर उसे साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान की है। इसके पोषण में उन्होंने अनेकों प्रमाण प्रस्तुत किये। 'विविध प्राकृतें एवं शौरसेनी प्राकृत' विषयक अपने द्वितीय व्याख्यान में डॉ. तिवारी ने स्पष्ट किया कि सभी प्राकृतों में शौरसेनी प्राकृत, जो कि बाद में दिगम्बर जैनों के आगमों की भाषा बनी और जिसका नाटककारों ने सर्वाधिक प्रयोग किया, जो नारायण श्री कृष्ण से भी पूर्व इस देश में प्रचलित थी । नारायण श्रीकृष्ण का जन्म ही उस शूरसेन प्रदेश में हुआ था, जहां की भाषा शौरसेनी प्राकृत थी। ____ व्याख्यानमाला के द्वितीय दिन दो विशिष्ट व्यक्तित्व पधारे। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए भारतीय भाषाओं के विशिष्ट विद्वान् डॉ. मण्डनमिश्र ने व्याख्यानमाला की स्थापना के लिए आचार्यश्री का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राकृत, अपम्रश एवं पालि के बिना संस्कृत की पूर्णता नहीं होगी। अतः हमें प्राकृत आदि सभी प्राचीन भाषाओं को न केवल पूर्ण सम्मान देना होगा, अपितु उनके अध्ययनअध्यापन का समुचित एवं व्यापक प्रबन्ध भी करना होगा। समारोह के विशिष्ट अतिथि श्री सुनील शास्त्री, पूर्व मंत्री उत्तरप्रदेश सरकार ने अपने पिताश्री पूर्वप्रधानमंत्री स्व० श्री लालबहादुर शास्त्री के भाषानुराग का स्मरण करते हुए संस्कृत विद्यापीठ की प्राकृत, अपभ्रंश आदि से समन्वित पूर्ण विश्वविद्यालय के रूप में स्पापित होने की कामना की। उन्होंने मुख्यवक्ता डॉ० लक्ष्मी नारायण तिवारी को रजतपात्र में रखकर मानसरोवर का जल भेंट किया एवं शाल, १०८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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