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________________ कामना है । इन श्लोकों को श्लेष के कारण राजपक्ष प्रभातपक्ष और राष्ट्रपक्ष तीनों तरह से व्याख्यायित किया जा सकता है । भूमिका लेखक वागीश शास्त्री ने तो उपर्युक्त चार पद्यों को शाकुन्तल के श्लोक चतुष्टय की तरह चिर स्मरणीय बताया है । वास्तव में यह महाकाव्य प्राचीनता के साथ नवीनता का असाधारण समन्वय प्रस्तुत करता है । महाकवि ने परम्परागत पौराणिक कथानक में परिवर्तन किए हैं । कथानक में चक्रवर्ती राजा के अधीन दो राजाओं का संबंध होना मुख्य विषय है, उसे बदलना संभव नहीं था फिर भी कवि मे अनेकों परिष्कार किए हैं और सुलोचना स्वयंवर का अपर नाम 'जयोदय' सार्थक बनाने को मूल कथानक से विलग राष्ट्रोदय को विज्ञप्त करने के लिए १०४ श्लोकों में प्रभात वर्णन किया है । सम्पूर्ण जयोदय काव्य कविकल्पनाओं का अनुपम भण्डार है किन्तु यह अट्ठारहवां सर्ग तो सम्पूर्ण रूप में समलंकृत है । खण्ड २१, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only -सम्पादक तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं १०१ www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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