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'जयोदय महाकाव्य' में प्रतिबिम्बित अद्यतन इतिहास
परमेश्वर सोलंको
___ भारतीय स्वातन्त्र्य आन्दोलन की उत्कर्ष वेला में लिखे जयोदय महाकाव्य की संपूर्ति पर महाकवि ने अपना परिचय देते हुए सात कामनाएं की हैं
जयतात् सुनिबन्धोऽयं पुष्यन् सन्निगलं चिरम् । राष्ट्र प्रवर्तनामिज्यां तन्वन्निधिमुद् धुरम् ॥ गण सेवी तृपो जात राष्ट्र स्नेहो वृषेषणाम् । वहन्निर्णयधीशाली ग्राम्यदोषातिगः क्षमः ॥ स्थिरत्वं मनुजाश्वेतः श्रीमन्तोऽवन्तु सूक्तिमत् । चम स्कुर्याज्जगन्नेतुर्भवनेषु वृषो निजः ॥ नित्यमभ्येयं संसर्ग महतां शुभकर्मसु । तता धी: स्याच्च चित्तश्री याच्छीश्रुत तत्परा ॥ मनागपि न संचारः कृच्छषु मम धीमतः । प्रसादादहतां शम्बधोरिणी स्यादिति स्वयम् ।।
कि सत्पुरूषों के मनोरथ पुष्ट करता हुआ यह सुनिबन्ध चिरकाल तक जीवन्त बना रहे; देश निर्बाध रूप से अत्यधिक प्रतिष्ठा पावे; शासकगण देश से स्नेह करने वाले, धार्मिक, बुद्धिमान, ग्राम्य दोष रहित सामर्थ्यवान हों; श्रीमन्त लोग सूक्ति सहित स्थिरता की रक्षा करें; लोक नेता अपने उज्ज्वल चरित्र से संसार में सुशोभित हों; मैं सत्संग से निरन्तर आत्मोन्नति करता रहूं और अरहन्त भगवान् के प्रसाद से शम्बधोरिणी कल्याण-परम्परा सतत बनी रहे। इन सात कामनाओं के साथ इन श्लोकों (२८.१००-१०४) में कवि-परिचय की निम्न पंक्ति बनती है- "जयपुरराज्यान्तर्गतराणावलीग्रामस्थित श्रीमत् चतुर्भुज निगमसुत श्रीभूरामरकृतप्रबन्धोऽयम् ।"-कि जयपुर राज्य के राणोली ग्राम वासी चतुर्भुज भूरामर ने यह किया है। विक्रमी संवत् १९८३ (लोक धराङ्कात्मक संगणिते विक्रमोक्त संवत्सरे) में लिखित यह महाकाव्य सर्वप्रथम संवत् २००७ में मूल रूप प्रकाशित हुआ । तदनन्तर स्वोपज्ञ टीका (सन् १९६५ में) लिखी जाने के बाद क्रमश: पूर्वाश सन १९७८ और उत्तरांश सन् १९८९ में छप कर अभी पिछले पर्युषण पर्व (दिनांक ९.९.१९९४) पर दो भागों में एक साथ मुद्रित हुआ है।
इस प्रकार विक्रम संवत्सर की बीसवीं सदी के अन्त में लिखा और ईसवी
खण्ड २१, अंक १
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