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समाज का शोषण करता है । वस्तुतः वह शिक्षा है ही नहीं जिसमें बहुजन सुखाय का भाव नहीं है । वर्तमान शिक्षा से यह मानवीय तत्त्व लुप्त होता जा रहा है। यह शिक्षा भौतिकवादी शिक्षा है । चेतना और संवेदना के विकास से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है । अत: यह मूल्यविहीन है। शिक्षा का लक्ष्य हमारी कोमल भावनाओं का विकास करना है । अतः गांधी की शिक्षा में चारित्रिक और भावनात्मक शिक्षा का विकास प्रमुख मूल्यपरक तत्त्व है । श्री एम. एस. पटेल ने ठीक ही लिखा है कि ----"गांधी की शिक्षा में निश्चित रूप से केवल साक्षरता या मात्र ज्ञान की प्राप्ति से अधिक स्वास्थ्य और नागरिक शिक्षा, सांप्रदायिक सद्भाव के विकास, छोटे-छोटे उद्योगों की शिक्षा तथा समुचित सांस्कृतिक और मनोरंजनात्मक क्रिया कलापों की व्यवस्था पर अधिक बल दिया गया है। इसके पीछे मुख्य विचार यह है कि सामाजिक शिक्षा का लोगों के सामान्य जीवन स्तर, भौतिक, नैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक को ऊपर उठाने का प्रयास करना चाहिए और उन अभावों के उन्मूलन में योगदान देना चाहिये जिससे अधिकांश जनता पीड़ित हो"। ___चाहे व्यक्ति की स्कूली शिक्षा हो या वयस्कों की सामाजिक शिक्षा सर्वत्र गांधी ने मानवीय मूल्यों को प्रधानता दी है । साक्षरता और ज्ञान तो इन मूल्यों के सिद्धि के साधन हैं । आचारविहीन ज्ञान, श्रम के विहीन सम्पत्ति, अन्तरात्माविहीन आनन्द, नैतिकताविहीन व्यापार, मानवताविहीन विज्ञान, त्यागविहीन पूजा और सिद्धांतविहीन राजनीति-सभी गांधी की दृष्टि में निरर्थक हैं। अतः गांधी की शिक्षा में प्रत्येक ज्ञान और व्यापार के अन्तर्गत मूल्यों का प्रवेश अनिवार्य माना गया
शिक्षा और धर्म
भारतीय शिक्षा प्राचीनकाल में धर्म के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ी थी। वैदिक, बौद्ध और जैन सभी में शिक्षा का विकास धर्म के माध्यम से हुआ है । गुरुकुल की शिक्षा में धार्मिक क्रियाओं का अभ्यास सहज रूप से छात्रों को मिल जाता था। अंग्रेजी शिक्षा में धर्म निरपेक्षता पर बल दिया गया। गांधी ने अपने शिक्षा सिद्धांतों और प्रयोग में गुरुकुल की धर्म निष्ठा और आधुनिक युग की धर्म निरपेक्षता दोनों को समन्वित करने का प्रयास किया। एक और उन्होंने अपनी शिक्षा की वर्धा योजना में प्रचलित धर्म की शिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं दिया तो दूसरी ओर उन्होंने शिक्षा ही क्या राजनीति, अर्थ तथा जीवन के सभी क्षेत्रों में धर्म की दृष्टि से ही मूल्यांकन करने का प्रयास किया। वर्धा-योजना में धर्म शिक्षा को स्थान नहीं देने का कारण था देश की एकता की रक्षा और तथाकथित धर्म से देश की एकता पर खतरा उत्पन्न हो सकता था परंतु सही अर्थों में उन्होंने धर्म को शिक्षा का अनिवार्य अंग माना। प्रश्न है---गांधी की दृष्टि में धर्म क्या है ? गांधी की दृष्टि में धर्म न तो अन्धविश्वासों के प्रति समर्पण है और न कर्मकांडों का यांत्रिक अभ्यास । वास्तविक धर्म, हिन्दू, इस्लाम, ईसाई आदि धर्मों से ऊपर है । धर्म मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन लाता है। यह हमें सत्य, प्रेम, न्याय तथा अन्तरात्मा की आवाज से अविभाज्य रूप से जोड़ता है। धर्म का काम हर
खण्ड २०, अंक ४
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