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________________ श्रीमद्भागवतीय आख्यानों का विवेचन हरिशंकर पाण्डेय श्रीमद्भागवत महापुराण भगवद्विभूति' अथवा विभूतियों का संग्रह है।' यह साक्षात् भगवान् के द्वारा कथित' भगवत्स्वरूप ही है। भगवत्महिमा, साक्षात्ज्ञानरूप इस महापुराण को विद्वान् लोग 'भागवत' कहते हैं। सम्पूर्ण संसार के दुःखनिवृत्यर्थ स्वयं भगवान् ने ही सनकादि ऋषियों के प्रति इसे उदिष्ट किया था। श्रीमद्भागवत में विविध विषयों का व्याख्यान किया गया है। ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनों का समन्वय उपस्थापित कर भक्ति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है। विविध आख्यानों के माध्यम से भक्ति तत्त्व एवं दर्शन के अनसुलझे प्रश्नों का सरल समाधान उपस्थित किया गया है । आख्यानों की संख्या शताधिक है । आख्यान आङ उपसर्गपूर्वक 'ख्या प्रकथने' (अदादिगणीया धातु) से 'करणाधिकरणयोश्च" सूत्र से करण अर्थ में 'ल्युट्' प्रत्यय करने पर आख्यान शब्द निष्पन्न होता है। विभिन्न कोशकारों ने प्रकथन, निवेदन, कथाप्रसंग, प्रतिवचन, प्रत्युत्तर, पुराण, इतिहास, चरित, कथांश और पूर्ववृतोक्ति आदि को आख्यान शब्द के समानार्थक माना है । बोलना, घोषणा करना, पुरानी कहानी आदि अर्थों में आख्यान शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है। "त्वक्षणेत्थंभूताख्यानभागवीप्सासुप्रतिपर्यनवः ।“ में करण अर्थ में एवं 'प्रश्नाख्यानयोः' में प्रतिवचन एवं प्रत्युत्तर अर्थ में आख्यान शब्द का प्रयोग उपलब्ध होता है । पुरानी कथाओं के अर्थ में महाभारत में इस शब्द का प्रयोग हुआ है :--- योऽधीते चतुरोवेदान् सर्वानाख्यानपञ्चमान् ।' पूर्ववर्ती घटनाओं का पुनर्कथन आख्यान है ।" हलायुध कोश के अनुसार आख्यान शब्द का अर्थ कथन होता है । ९ 'शब्द स्तोम महानिधि' के अनुसार इसका अर्थ 'पुरावृत्त-कथन' है।" कथा अर्थ में नपुंसकलिंग में आख्यान शब्द का प्रयोग होता है । __आचार्य हेमचन्द्र और विश्वनाथ ने कथा के अन्तर्गत ही आख्यान को रखा है ।" साहित्य दर्पण में पुरावृतोक्ति या पुराकथन के अर्थ में आख्यान शब्द का प्रयोग किया गया है। पौराणिक, ऐतिहासिक कथावृत्त के अर्थ में भी आख्यान शब्द का प्रयोग मिलता है।" महाभारतादि आर्षकाव्यों के सर्गार्थ में भी आख्यान शब्द का प्रयोग पाया जाता है। श्रीमद्भागवत में आध्यान", चरित', इतिहास", कथा", पुराकथा" आदि अण्ड २०, अंक ३ २१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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