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________________ कालुयशोविलास में चित्रात्मकता हृदय के सौम्याकाश में प्रसृत शैत्य पावनत्व सञ्चारिणी अनुभूतिज्योत्सना तीव्र से तीव्रतर होती हुई सचेतन मन - प्रदेश को आह्लादित करती है उसमें बिम्बात्मकता, चित्रात्मकता प्राणस्वरूप अनुस्यूत होती हैं । वही काव्य हैं । कवि - अनुभूति की यथातथ्य अभिव्यक्ति बिम्ब है । सी० डे० लेविस ने बिम्ब की परिभाषा करते हुए बिम्ब की चित्रात्मकता का स्पष्ट उल्लेख किया है-— In its simplest form, it is a picture made out of words. अर्थात् सरलतम रूप में बिम्ब को शब्द-चित्र कह सकते हैं । वस्तुतः बिम्ब कवि द्वारा अपने विचारों को उदाहृत, सुस्पष्ट एवं अलंकृत करने के लिए प्रयुक्त एक लघु शब्द चित्र है । यह किसी अन्य वस्तु के साथ वाच्य या प्रतीयमान साम्य या उपमा द्वारा प्रस्तुत किया गया एक वर्णन या विचार है । कवि ने अपने वर्ण्य विषय को जिस ढंग से देखा, सोचा या अनुभव किया है । बिम्ब उसकी समग्रता, गहनता या विशदता के कुछ अंश को अपने द्वारा उद्बुद्ध भावों एवं अनुसंगों के माध्यम से पाठक तक संप्रेषित करता है । " समणी सत्यप्रज्ञा बिम्ब शब्द - अंग्रेजी के इमेज का पर्याय है । इमेज का अर्थ है - किसी वस्तु का मनश्चित्र या मानसी प्रतिकृति और कल्पना अथवा स्मृति में उपस्थित चित्र अथवा प्रतिकृति । जेम्स० आर० क्रूजर के अनुसार जो वस्तु सामने नहीं हैं, उसे इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य बना देना बिम्ब का कार्य है । बिम्ब किसी अमूर्त विचार या भावना की पुनर्निर्मिति है ।" स्वयं दृष्ट, अनुभूत एवं प्रत्यक्षीकृत वस्तुओं का पाठक या श्रोता के सामने प्रत्यक्षीकरण बिम्ब है । " आधुनिक हिन्दी आलोचक काव्य बिम्ब में चित्रात्मकता एवं इन्द्रिय गम्यता को अनिवार्य मानते हैं । जीवन से हटकर काव्य को नहीं समझा जा सकता । काव्य जीवन है । जीवन की संवेदनाएं हैं । जीवन का आहार है । गेय काव्य तन्मयता के लिए वरदान है । एक्सरे शरीर के अवयवों का तो आन्तरिक चित्र प्रस्तुत कर देता ३५३ खण्ड १९, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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