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प्रश्न-व्याकरण में अहिंसा का स्वरूप
o डा० हरिशंकर पाण्डेय
प्राचीनकाल से ही विश्व के लगभग सभी उत्कृष्ट दार्शनिकों, आचार्यों, विचारकों एवं कोशकारों ने अहिंसा की व्याख्या की है, क्योंकि संसार में यह एक ऐसा निकेतन है, जहां हर कोई शांति एवं समत्व को प्राप्त करता है । वैदिक , जैन, बौद्ध, चार्वाक, इसाई, इस्लाम आदि सभी धर्मों में इसके स्वरूप एवं सार्वजनीन महत्त्व की स्वीकृत दी गई है अहिंसा एक ऐसा तत्त्व है जिसको सबने अविसंवादी रूप से स्वीकारा है। यह भी कहा जा सकता है कि अहिंसा एक ऐसा संगम है जहां पर जाकर विपरीत दिशाओं में बहने वाली सभी धाराएं एकाकार हो जाती हैं।
नत्र पूर्वक 'हिसि (हिंस्) हिंसायाम्" धातु से अङ (अ) और स्त्रीलिंग में टाप् करने पर अहिंसा शब्द निष्पन्न होता है। कायिक, वाचिक एवं मानसिक हिंसा का सर्वथा अभाव अहिंसा है। द्रव्य एवं भावरूप हिंसा का पूर्णतया निरसन अहिसा है। मोनीयर विलियम्स' के अनुसार अहिंसा का अर्थ है-Not injuring anything, harmlessness, security, safeness etc. .
____ आप्टे की दृष्टि में 'अनिष्टकारिता का अभाव, किसी प्राणी को न मारना, मन, वचन और कर्म से किसी को पीड़ा न देना आदि अहिंसा है।' न हिंसा, अहिंसा या हिंसा विरोधिनी अहिंसा है। प्रमाद एवं कषायों के वशीभूत होकर दस-प्राणों में से किसी भी प्राण का वियोग न करना अहिंसा
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि हिंसा का अभाव अहिंसा है। यहां केवल एक निषेधात्मक पक्ष की व्याख्या हुई। अहिंसा के दो रूप हैंनिषेधात्मक एवं विधेयात्मक । अहिंसा में प्रयुक्त 'अ' नञ् का रूप हैं जिसके दो अर्थ होते हैं
द्वौ नौ समाख्यातो पर्युदास प्रसज्यको ।
पर्युदास सदृशग्राही प्रसज्यस्तु निषेधकृत् ॥ अर्थात् 'नञ्' के दो अर्थ होते हैं ---पर्युदास और प्रसज्य । पर्युदास
खण्ड १९, अंक ४
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