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'स्थानांग' में संगीत कला के तत्त्व
'कला'
का प्रचलित व प्राचीन अर्थ है- किसी भी कार्य को पूर्ण कुशलता से करना । भरत के नाट्यशास्त्र में कला का प्रयोग 'ललित कला' के स्थान पर किया गया है । प्रत्यय एवं स्त्री विविक्षा में टाप होकर कला पद निष्पन्न होता है जिसका अर्थ - नृत्य गीतादिलालित्य कल धातु अच सम्पादिक विद्या ।' ललित कलाओं में संगीत, काव्य, चित्रकला, वस्तुकला तथा शिल्पकला- - इन ५ कलाओं का समावेश किया जाता है । आधुनिक काल में भी हम कला शब्द का अर्थ ललित कला से ही समझते हैं । माधुर्य, सौन्दर्य, सहजता, सरलता, प्रासाद, ओज, प्रवाह आदि बातें लालित्य के अन्तर्गत आती हैं । लयात्मकता लालित्य का एक विशेष गुण है ।
सुश्री निर्मला चोरड़िया
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बहुत से विद्वानों ने 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' के समन्वय को कला माना है । प्लेटो ने कला को बिल्कुल देव माना है । उसके अनुसार कला में मानव प्रकृति की समस्त वस्तुओं की अनुकृति करता है 'Art is shadow of shadow' । कला को समाज में चेतना उत्पन्न करने वाली शक्ति के रूप में ग्रहण किया गया है । कई मनीषियों ने सौन्दर्य को ही कला का मापदण्ड माना है । कला वही है जो हर एक व्यक्ति के हृदय को छुए ।
भारतीय साहित्य और भारतीय कला के समान भारतीय संगीत भी शताब्दियों की अमूल्य देन है । सृष्टि की उत्पत्ति का उपादान कारण संगीत माना गया है । क्योंकि संगीत कला का मूल नाद है और नाद सृष्टि का आधार माना गया है | नाद के आहत रूप को ही संगीत कहा जाता है । मिल्टन ने 'पेराडाइज लास्ट' में लिखा है 'जब ईश्वर ने सृष्टि रची तब उसने पहले बिखरे हुए महाभूतों को संगीत के द्वारा एकत्र किया तत्पश्चात् सृष्टि की रचना की ।
प्राचीन संस्कृत वाङ्मय में 'संगीत' का व्युत्पत्तिगत अर्थ 'सम्यक् गीतम्' है । संगीत में गीत, वाद्य, तथा नृत्यादि को अभिन्न साहचर्य संगीत रत्नाकार के अनुसार संगीत की परिभाषा - 'गीत वाद्यं तथा नृत्यं त्र्यं संगीत मुच्यये' अर्थात् संगीत एक अन्विति है, जिसमें गीत, वाद्य तथा नृत्य - तीनों
खण्ड १९, अंक ४
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