________________
जोहरीमलजी पारख ने उठाया है । श्वेताम्बर विद्वानों में आयी इस चेतना का प्रभाव दिगम्बर विद्वानों पर भी पड़ा और आचार्यश्री विद्यानंदजी के निर्देशन में आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथों को पूर्णतः शौरसेनी में रूपान्तरित करने का एक प्रयत्न प्रारम्भ हुआ है, इस दिशा में प्रथम कार्य बलभद्र जैन द्वारा समयसार, नियमसार का कुन्दकुन्द भारती से प्रकाशन है । यद्यपि दिगम्बर परंपरा में ही पं० खुशालचन्द गोरावाला, पद्मचन्द्र शास्त्री आदि दिगम्बर विद्वानों ने इस प्रवृत्ति का विरोध किया ।
आज श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्पराओं में आगम या आगम रूप में मान्य ग्रन्थों के भाषिक स्वरूप संशोधन की जो चेतना जागृत हुई है, उसका कितना औचित्य है, इसकी चर्चा तो मैं बाद में करूंगा । सर्वप्रथम तो इसे समझना आवश्यक है कि इन प्राकृत आगम ग्रंथों के भाषित स्वरूप में किन कारणों से और किस प्रकार के परिवर्तन आये हैं। क्योंकि इस तथ्य को पूर्णतः समझे बिना केवल एक दूसरे के आधार पर अथवा अपनी परम्परा को प्राचीन सिद्ध करने हेतु किसी ग्रंथ के स्वरूप को परिवर्तन कर देना, संभवतः इन ग्रन्थों के ऐतिहासिक क्रम एवं काल-निर्णय एवं इनके पारस्परिक प्रभाव को समझने में बाधा उत्पन्न करेगा ओर इससे कई प्रकार के अन्य अनर्थ भी सम्भव हो सकते हैं ।
किन्तु इसके साथ ही साथ यह भी सत्य है कि जैन आचार्यों एवं जैन विद्वानों ने अपने भाषिक व्यामोह के कारण अथवा प्रचलित भाषा के शब्द रूपों के आधार पर प्राचीन स्तर के आगम ग्रन्थों के भाषिक स्वरूप में परिवर्तन किया है । जैन आगमों की वाचना को लेकर जो मान्यताएं प्रचलित हैं उनके अनुसार सर्वप्रथम ई० पू० तीसरी शती में वीर निर्वाण के लगभग एक सौ पचास वर्ष पश्चात् पाटलीपुत्र में प्रथम वाचना हुई । इसमें उस काल तक निर्मित आगम ग्रंथों, विशेषतः अंग आगमों का सम्पादन किया गया । यह स्पष्ट है कि पटना की यह वाचना मगध में हुई थी और इसलिए इसमें आगमों की भाषा का जो स्वरूप निर्धारित हुआ होगा, वह निश्चित ही मागधी / अर्धमागधी रहा होगा । इसके पश्चात लगभग ई० पू० प्रथम शती में खारवेल के शासनकाल में उड़ीसा में द्वितीय वाचना हुई यहां पर इसका स्वरूप अर्धमागधी रहा होगा, किंतु इसके लगभग चार सौ वर्ष पश्चात् स्कंदिल और आर्य नागार्जुन की अध्यक्षता में क्रमश: मथुरा व वलभी में वाचनाएं हुईं। संभव है कि मथुरा में हुई इस वाचना में अर्धमागधी आगमों पर व्यापक रूप से शौरसेनी का प्रभाव आया होगा । वलभी के वाचना वाले आगमों में नागार्जुनीय पाठों के तो उल्लेख मिलते हैं, किंतु स्कंदिल की वाचना के पाठ भेदों का कोई निर्देश नहीं है । स्कंदिल की वाचना सम्बन्धी पाठ भेदों का यह अनुल्लेख विचारणीय है । नंदीसूत्र में स्कंदिल के सम्बन्ध में यह कहा
खण्ड १९, अंक ३
२३७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org