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विश्वशान्ति के पुरोधा :
आचार्य श्री तुलसी
परमेश्वर सोलंकी
सन् १९४९ का मर्यादा-महोत्सव राजलदेसर में हुआ था। ४ फरवरी को वहां पेरिस (फ्रांस) के संस्कृत प्रोफेसर रेणु पधारे। २४ फरवरी को आचार्यश्री सरदारशहर पहुंचे और २५ फरवरी को वहां संविधान परिषद् के सदस्य मिहिर वन्द्योपाध्याय एम० पी० आये उसी दिन । आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में कहा
"पहले का समय अब आज नहीं रहा ।.........मैंने भी ११ वर्ष के शासन में यह अनुभव किया है कि आखिर युवक धार्मिक भावनाओं से दूर क्यों होते जा रहे हैं ? तो सोचा-युवक क्रान्ति चाहते
-इस कथन के पीछे तत्कालीन भारत के प्रधान न्यायाधीश सर पेट्रिक स्पेन्स, लेडी मेरी स्पेन्स और तत्कालीन भारतीय सामाजिक-स्वास्थ्य, नैतिकता और सदाचार सभा की मुख्य संगठक कुमारी एम. शेफर्ड के प्रश्नोत्तर थे ।'
दरअसल आचार्यश्री ने ग्यारह वर्ष की वय में परिवार की चिन्ता छोड़ 'तेरापंथ संघ' का मुनि-व्रत धारण किया और बाईसवें वर्ष साधुसाध्वियों के अभ्युत्थान का जिम्मा लिया और तेतीस वर्ष की वय में वे मानव मात्र के कल्याणार्थ सतत सचेष्ट हो गए।
सन् १९४५ में जबकि वे ६२७ साधु-साध्वियों के आत्मिक उन्नति और उनके चारित्रिक अभ्युत्थान के लिए प्रयत्नशील थे तो उन्होंने २९ जून १९४५ को अशांत विश्व की शांति के लिए निम्न संदेश दिया।
"यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि आज की दुनिया सर्वतोमुखी अशान्ति से व्याकुल एवं पीड़ित है; केवल इने-गिने दृढ़वती, संतोषी, आत्म-कल्याण के पथिक, सर्वस्व त्यागी साधुओं के अतिखंड १९, अंक ३
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