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________________ णमोकार-मंत्र में 'ण'-वर्ण का महत्त्व - जयचन्द्र शर्मा जीवन में अनेक प्रकार के प्रश्न व समस्याएं आती रहती हैं, जिनका समाधान हम अपने तरीके से कर लेते हैं पर कुछ प्रश्न व समस्याएं ऐसी होती हैं, जिनका समाधान गहन अध्ययन, चिन्तन अथवा योग्य गुरुओं के द्वारा ही सम्भव हो सकता है। विशेषतः किसी भी धर्म से सम्बन्धित विषय पर कलम उठाना तो उक्त धर्म के विद्वानों का ही कार्य है । जहां तक 'नमस्कार-मंत्र के, केवल 'ण-वर्ण' की ध्वनि के महत्व पर प्रकाश डालने का प्रश्न है, वह संगीत के स्वर एवं ध्वनि-विज्ञान से भी सम्बन्धित है । अतः इस विषय पर सांगीतिक दृष्टि से प्रकाश डाला जा रहा है, जो मंत्र-साधकों के लिए लाभप्रद होगा--ऐसी पूर्ण आशा है। सभी जानते हैं कि मंत्र में शक्ति होती है। विभिन्न शक्तियों की साधनार्थ विभिन्न प्रकार के मंत्र हैं। पांच पदों वाले णमोकार-मंत्र में भी शक्ति है ! जैन-सम्प्रदाय का यह प्रमुख मंत्र है। इसकी साधना करने वालों का कल्याण होता है--ऐसा विश्वास है। इसीलिए श्रावक की पूर्ण आस्था व श्रद्धा होती है । उस पर किसी प्रकार का संशय व संदेह करने का प्रश्न ही नहीं उठता। उक्त मंत्र के अर्थ को समझाने के लिए जैनाचार्यों एवं विद्वानों ने अनेक उपयोगी पुस्तकें व ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें मंत्र का अर्थ व साधना के तरीकों पर प्रकाश डाला गया है। ऐसा ही एक ग्रन्थ अमृत-कलण' है। (संपादिकाएं ---साध्वी जिनप्रभा एवं साध्वी स्वर्ण रेखा) । उसे देखने का अवसर प्राप्त हुआ। उक्त ग्रन्थ के पृ० ३ व ४ पर उक्त मंत्र की साधना-विधि पर जिस प्रकार से प्रकाश डाला गया है, वास्तव में वह महत्वपूर्ण तथा उपयोगी होने के साथ-साथ चिन्तन का विषय भी है। प्रत्येक मंत्र की साधना के लिए उसके शब्दों का सही उच्चारण, जप करने की विधि, उदात्तादि स्वरों के अनुसार उसका पठन, बैठने का आसन, श्वास क्रिया, भावार्थ, प्रभाव आदि का ज्ञान साधकको होना आवश्यक है। खण्ड १९, अंक ३ १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524577
Book TitleTulsi Prajna 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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