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उनके ग्रन्थों के अवलोकन से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है।
प्रतिभा के आधार पर कवि के तीन भेद माने गए हैं। सारस्वत, आभ्यासिक और औपदेशिक । जो जन्मान्तरीय संस्कार वशात् काव्यरचना में प्रवत्त होता है वह सारस्वत, अभ्यास के बल पर काव्यरचना में प्रवीणता प्राप्त करनेवाला आभ्यासिक तथा गुरु-उपदेश एवं तंत्र-तंत्र की सहायता से काव्य-विरचक औपदेशिक-कवि कहा जाता है।
आचार्य-भिक्षु को यहां सारस्वत-श्रेणी में उपस्थापित किया जा सकता है, क्योंकि ऐसी प्रसिद्धि है कि उन्हें प्राक्तन संस्कार वशात् काव्य-चातुर्य या सिद्ध-सरस्वती की प्राप्ति हुई थी। तेरापंथ-प्रबोध के गीतकार ने स्वामीजी को औत्पत्तिकी-प्रतिभा का अवतार माना है--
'होनहार विरुवान चीकणापात' बात विख्यात है," 'उगंतो ही तपै तेज रवि' उदाहरण नवजात है,
हो सन्तां ! प्रतिभा उत्पत्तिया पाई आकार हो ।
नंदीसूत्र 8 में औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी आदि बुद्धि के चार भेद बताए गए हैं। बिना देखे-पढ़े अर्थों का उपस्थापन औत्पत्तिकी बुद्धि का विषय है। सारस्वत-कवि औत्पत्तिकी-बुद्धि-सम्पन्न होता है । जिस कवि की वाणी में प्रतिभा स्वयमेव प्रवेश कर जाए उसे सारस्थत कहते हैं----'जन्मान्तर संस्कार-प्रवृत्तसरस्वतीकोबुद्धिमान्सारस्वत: कविभिक्षु विलक्षण प्रतिभा से सम्पन्न थे, इसलिए इन्हें सारस्वत कवि कहा जा सकता है।
रचना की मौलिकता की दृष्टि में कवि के चार भेद माने गए हैं-- उत्पादक, परिवर्तक, आच्छादक और संवर्गक । जो स्वयमेव नवीन अर्थों एवं भावों की उपस्थापना करता है वह उत्पादक, प्राचीन कवियों के भावों को बदलकर अपना लेता है वह परिवर्तक, अन्य कवियों की रचनाओं को छिपाकर तत्समान रचना करता है वह आच्छादक तथा अन्य कवि की रचना को अपना कहने वाला संवर्गक-कवि होता है। डाकू को संवर्गक कहा जाता है । प्रस्तुत संदर्भ में आचार्य-भिक्षु को उत्पादक-कवि कहा जा सकता है । इन्होंने अपने ग्रंथों में अन्य किसी कवि के भावों का ग्रहण नहीं किया है।
यहां यह भी विचार्य है कि भाचार्य भिक्षु परिवर्तक-कवि थे ? प्राचीन कवियों के भावों को अपनाकर अपने अनुसार जो अभिव्यक्त करता है वह परिवर्तक-कवि कहलाता है। स्वामी जीने प्राचीन कवियों-गणधरों के भागमिक वचन को ही लोकभाषा में अभिव्यक्त किया है, इसलिए इन्हें परिवर्तक कवि भी कहा जा सकता है।
अर्थापहरण की दृष्टि में कवि के पांच भेद निरूपित किए गए हैंम्रामक, कर्षक, चुंबक, द्रावक और चिंतामणि । २२ जो प्राचीन कवियों के
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तुलसी प्रज्ञा
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