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________________ महाकवि भिक्षु के क्रान्तिकारी आयाम - हरिशंकर पाण्डेय कवि यथार्थ वर्णयिता होता है। विविधात्मिका सष्टि से प्राप्त विलक्षण अनुभवों को कल्पना, भावना और चर्वणीयता से पुटित कर शाब्दिक अभिव्यक्ति प्रदान करने वाला कवि कहलाता है। वह आनन्द मात्र का विधायक होता है । भारतीय-साहित्य में कवि को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । 'कुङ शब्दे' और 'कवणे' धातु से कवि शब्द निष्पन्न होता है। राजशेखर के शब्दों में-कवि शब्दश्च 'कवृवणे इत्यस्य घातो:'।' 'कौति शब्दायते विमृशति रसभावानिति कवि:' अर्थात् कवि रस एवं भावों का विमशंक होता है । आचार्य मम्मट ने कवि के अलौकिक-सामर्थ्य की ओर निर्देश किया है। भट्टतौत कवि को वर्णना-निपुण मानते हैं । आनन्दवर्द्धन ने कवि को प्रजापति एवं काव्य संसार को उसकी सृष्टि के रूप में वर्णित किया अपारे काव्य संसारे कविरेक: प्रजापतिः । यथास्मै रोचते विश्वं तथा विपरिवर्तते ॥' उसकी वाणी सम, प्रसन्न, मधुर, उदार और ओजस्वी होती है। वैदिक वाङमय में विश्वनियन्ता, सृष्टि-स्रष्टा को काव कहा गया है- कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूः५ अर्थात् वह सर्वद्रष्टा, सर्वज्ञ एवं सर्वोपरि विद्यमान होता है तथा स्वेच्छा से प्रकट होता है । कोशकारों ने कविशब्द का अर्थ सर्वज्ञ, प्रतिभाशाली, चतुर, विचारवान्, प्रशंसनीय, ज्ञानविज्ञान सम्पन्न एवं काव्यकार आदि किया है । प्रस्तुत संदर्भ में तेरापंथ धर्मसंघ के आधाचार्य कवि भिक्षु (भीखण स्वामी) के विभिन्न आयाम एवं उनकी शेमुषी प्रतिभा के विषय में विचार का विनम्र प्रयास किया गया है। __ यद्यपि एक तरफ महान् व्यक्तित्व भीखण स्वामी और दूसरी तरफ अल्पसत्त्व प्राणी मैं-इस परिस्थिति में महान-व्यक्तित्व के बारे में लिखना उपहास का विषय ही होगा, परन्तु 'संतो निसर्गात उपकारिणोयत्' सन्त स्वभाव से उपकारी होते हैं ऐसा विश्वास कर उन्हीं का ध्यान कर उनके खण्ड १९, अंक ३ २१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524577
Book TitleTulsi Prajna 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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