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________________ वैसे ही चन्दना की सिसकियों से समस्त आकाश व्याप्त हो गया । महावीर जैसे सर्वस्व त्यागी पुरुष भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे । ध्येयं सम्यक् क्वचिदपि न वा न्यून-सज्जा भवेत, घोषा: पुष्टा बहुलतुमुलास्ते पुरश्चारिण: स्युः । आकर्षे युर्गमन-नियतं ये प्रभोानमत्र, यन् मूकानां न खलु भुवने क्वापि लभ्या प्रतिष्ठा ।२२ १०. आंसू का गीत-अश्रुवीणा आंसू का गीत है । प्राप्तव्य की प्राप्ति का श्रेष्ठ एवं सशक्त माध्यम आंसू हैं। बिना रोए प्रितम मिलता कहां है ? जिसने रोया उसी ने पाया । प्रियतम की शय्या उस टापू में स्थित है, जिसके चारों तरफ आंसूओं का समुद्र लहराता है। पार्वती ने आंसू के इस महासमुद्र को पारकर शिवजी को पाया। पार्वती की शिवध्वनि और अश्रुधारा ने सम्पूर्ण वन-प्रदेश को रुला दिया। यक्ष रोया। उसके रूदन से वन्य-प्रान्त भी रोने लगा। गजेन्द्र, कुन्ती, द्रौपदी, भीष्म, गोपियां आदि सब रोये । सूर, मीरा, तुकाराम, चैतन्य महाप्रभु आंसुओं की धारा पर बैठकर ही प्रभु के घर जा सके। चन्दनबाला को भी प्रभु कैसे मिलते ? जब तक उसकी निठोली आंखों से मांस की तरंगिनी तरंगातीत नहीं हुई -- प्रभु कहां मिले ? __ चाहे शकुन्तला-दुष्यन्त मिलन हो या भवभूति की सीता का रामगृह पुनरागमन । सबनेआंसू का ही सहारा लिया । आंसू जीवन के लिए महदुपकारक हैं। जब सब कोई साथ छोड़ देते हैं तब आंसू ही साथ होते हैं । २४ गोपियों की दशा भी कृष्ण के वियोग में कुछ ऐसी ही हो गयी थी--- पादो पंदं न चलतस्तव तब पादमूलात् । यामः कथं व्रजमथो करवाम किं वा ।।२५ आंस ही विपत्काल के मित्र हैंसार्थञ्चैकोऽनुभवति विपद्भारमोक्षश्च युष्माल्लब्ध्वा नान्यो भवति शरणं तत्र यूयं सहायाः ॥५ आंसू अमोघशक्ति सम्पन्न हैं । जिसे संसार की कोई शक्ति नहीं रोक सकती वे भी आंसू की धारा में बह जाते हैं । भक्तिमती चन्दना कहती हैहे आंसू ! जिन्हें कोई रोक नहीं सकता वे भी तुम्हारे लघु-प्रवाह में सहसा डूब जाते हैं । तुम्हारे अन्दर में कोई अद्भुत शक्ति हैं इसे सब जानते हैं चित्राशक्तिः सकलविदिता हन्त ! युष्मासु भाति, रोद्धं यान्नाक्षमत पृतना नापि कुन्ताग्रमुग्रम् । खातं गर्ता गहनगहनं पर्वतश्चापगाऽपि, मग्नाः सद्यो वहति विरलं तेऽपि युष्मत्प्रवाहे ।। आंसू हृदय को आर्द्र करते हैं और आर्द्र हृदय के सजीव भाव अनुलङ ध्य खंड १९' अंक ३ १८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524577
Book TitleTulsi Prajna 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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