SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर, कालिदास मानते हैं कि निर्दोष ही बेवजह मारे जाते हैं और दुःख के भागी होते हैं । दुष्यन्त का तो क्या ? शाप मिला तो वह शकुन्तला को भूल गया, उसे कोई दुःख नहीं। शाप-मुक्ति हुई तो पुनः उसे शकुन्तला मिल गई। पर सम्पूर्ण नाटक में मूल रूप में दुःख तो निर्दोष कन्या शकुन्तला को ही भोगना पड़ा। प्रेम का सम्बन्ध हृदय से होता है । हर एक सांस में प्रेम का अहसास हो, वही सच्चा प्रेम है। जहां अंगूठी और रूमाल जैसी भौतिक वस्तुएं प्रेम की पहचान बनते हैं वह प्रेम कदापि प्रेम नहीं हो सकता है। यहां दुष्यन्त को शाप कवच के रूप में पहनाया गया है। नाटक में से शाप को निकाल देने पर प्रेम की जो छवि सामने होगी, वह शारीरिक-आकर्षण से उपजी दुष्यन्त की विलासी वृत्ति की ही होगी। और बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि शाप भी कैसा अजीब ? कि जिसकी वजह से दुष्यन्त शकुन्तला के साथ किए गये सहवास में आरोपित अपने तेज को तो भूल गया, परन्तु अपनी विलासी-वृत्ति को नहीं भूला और उसे स्वयं की ही अंगूठी देख लेने मात्र से शकुन्तला का स्मरण भी हो आया। यहां तक कि सानुमती एवं धनमित्र के प्रसंग में भी दुष्यन्त की प्रेम-निष्ठा परिलक्षित नहीं होती है। शकुन्तला का स्मरण हो आने के बाद भी वह एक प्रेमी के रूप में शकुन्तला के लिए दुःखी नहीं है। उसे तो दुःख सिर्फ इतना है कि राजा होकर के उसने निर्दोष शकुन्तला का त्याग कर दिया । शकुन्तला को भी अन्य रानियों की तरह अन्तःपुर में रखा जा सकता था और उसके कोई संतान न होने की स्थिति में सगर्भा शकुन्तला का त्याग करके, वह संतान-सुख से वंचित रह गया है।१३ अतः कालिदास के ऋतुसंहार, मेघदूत के अतिरिक्त कृतियों में कवि का हृदय एवं मस्तिष्क समतुल्य रहे हैं । परंतु मेघदूत कवि की हृदयाप्लावित कृति है । जो हृदय से निकली आह कविता बनी, वही प्रेम की कविता हुई और वह मेघदूत है, जिसके अक्षर-अक्षर में हृदय की धड़कन है, जहां प्रेम की आग दोनों के दिलों में यौवन पर सुलग रही है । मेरे खयाल में तहदिली मुहब्बत को बयां करने के लिए ही कवि ने मेघदूत की रचना को होगी या यं कहूं कि यह मुहब्बत में पकी हुई कविता एकाएक "मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः...' की तरह कण्ठ से फूटी होगी या "वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान'... वाली कविता रही होगी। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि "अभिज्ञान शाकुन्तलम्' को दुष्यन्त एवं शकुन्तला की प्रणय-कथा वाला नाटक नहीं कहना चाहिए। यह तो कालिदास के राज्याश्रित होकर भी राजा के चरित्र को उजागर करने वाला क्रांतिकारी नाटक है । और इसीलिए कवि ने कृति के अभिधान में सविशेष "अभिज्ञान' शब्द खण्ड १९, अंक ३ १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524577
Book TitleTulsi Prajna 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy