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________________ अध्यात्म का केन्द्रीय तत्त्व है आत्मा। वह शरीर के आवरण में उपस्थित है। अध्यात्म उसकी खोज, अनुसंधान, अनुशीलन और साक्षात्कार की प्रक्रिया है । एक आध्यात्मिक व्यक्ति अन्तदृष्टि और अतीन्द्रिय चेतना के माध्यम से आत्मा तक पहुंचने का प्रयत्न करता है। विज्ञान भी सत्य की खोज के लिए कृतसंकल्प है। उसके पास खोज का साधन है यान्त्रिक उपकरण । आत्मा को पकड़ सके, वैसा सूक्ष्म उपकरण अभी तक निर्मित नहीं हुआ है, इसलिए उसकी खोज का मुख्य विषय रहा है भौतिक जगत् । कोई भी आध्यात्मिक व्यक्ति भौतिक जगत् के सूक्ष्म रहस्यों को जाने बिना आध्यात्मिक क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकता। कोई भी वैज्ञानिक चेतना के रहस्यों को जाने बिना भौतिक जगत् के नियमों की वास्तविकता को नहीं जान सकता। इसलिए वैज्ञानिक के लिए जरूरी है आध्यात्मिक होना और आध्यात्मिक के लिए जरूरी है वैज्ञानिक होना। अध्यात्म और विज्ञान के मध्य जो कृत्रिम दूरी पैदा कर रखी है, उसको समाप्त करना नितान्त आवश्यक है। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) इस दिशा में प्रयत्नशील रहे। इन दोनों के समन्वय-सूत्र बौद्धिक संसद के सामने प्रस्तुत हों, यह आजकी अपेक्षा राजलदेसर ८अगस्त, १९९३ आचार्य तुलसी युवाचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524575
Book TitleTulsi Prajna 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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