________________
भौतिक संरचना के रूप में स्वीकार किया है और उन विमानों में निवास करने बालों को देव बताया। इसका फलित यह है कि जैन विचारक वैज्ञानिक दृष्टि तो रखते थे किन्तु परम्परागत धार्मिक मान्यताओं को ठुकराना नहीं चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अवधारणाओं के बीच एक समन्वय करने का प्रयास किया है।
जैन ज्योतिषशास्त्र की विशेषता है कि वह वैज्ञानिकों के समान इस ब्रह्माण्ड में असंख्य सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र व तारागणों का अस्तित्व मानता है। उसकी मान्यता है कि जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं, लवण समुद्र में चार सूर्य व चार चन्द्रमा हैं । धातकी खण्ड में आठ सूर्य व आठ चन्द्रमा हैं । इस प्रकार प्रत्येक द्वीप व समुद्र में सूर्य व चन्द्रों की संख्या द्विगुणित होती जाती है।
जहां तक आधुनिक खगोल विज्ञान का प्रश्न है वह भी अनेक सूर्य व चन्द्र की अवधारणा को स्वीकार करता है। फिर भी सूर्य, चन्द्र आदि के क्रम एवं मार्ग, उनके आकार एवं पारस्परिक दूरी आदि के सम्बन्ध में माधुनिक खगोल-विज्ञान एवं जैन आगमिक मान्यताओं में स्पष्ट रूप से अन्तर देखा जाता है । सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र एवं तारा गण आदि की अवस्थिति संबंधी मान्यताओं को लेकर भी जैन धर्म दर्शन व आधुनिक विज्ञान में मतैक्य नहीं है। जहां आधुनिक खगोल विज्ञान के अनुसार चन्द्रमा पृथ्वी के अधिक निकट एवं सूर्य दूरी पर है, वहां जैन ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को निकट व चन्द्रमा को दूर बताया गया है। जहां आधुनिक विज्ञान के अनुसार चन्द्रमा का आकार सूर्य की अपेक्षा छोटा बताया गया वहां जैन परम्परा में सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा को बहत् आकार माना गया है । इस प्रकार अवधारणा की दृष्टि से कुछ निकटता होकर भी दोनों में भिन्नता ही अधिक देखी जाती है।
जो स्थिति जैन खगोल एवं आधुनिक खगोल विज्ञान सम्बन्धी मान्यताओं में मतभेद की स्थिति है, वही स्थिति प्रायः जैन भूगोल और आधुनिक भूगोल की है। इस भू-मण्डल पर मानव जाति के अस्तित्व की दृष्टि से ढाई द्वीपों की कल्पना की गयी है-जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड और पुष्करार्ध । जैसा कि हमने पूर्व में बताया है जैन मान्यता के अनुसार मध्यलोक के मध्य में जम्बूद्वीप है, जो कि गोलाकार है, उसके आस-पास उससे द्विगुणित क्षेत्रफल वाला लवण समुद्र है जो क्षेत्रफल में जम्बूद्वीप से आठ गुणा बड़ा है उसके आगे पुनः वलयाकार में पुष्कर द्वीप है, जिसके आधे भाग में मनुष्यों का विकास है । इस प्रकार एक दूसरे से द्विगुणित क्षेत्रफल वाले असंख्य द्वीप-समुद्र वलयाकार में अवस्थित है । यदि हम जैन भूगोल
खंड १९, अंक १
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org