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तुलसी प्रज्ञा
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मूल्य एवं शिक्षा : एक विश्लेषण
डा. रामशकल पाण्डेय
मूल्य की अवधारणा
____ मूल्य, अभिवृत्तियाँ तथा आदर्श हमारे व्यवहार को निर्देशित तथा नियंत्रित करते हैं । मूल्यों से अभिप्रेरणा को दिशा मिलती है । हमारे व्यवहार का नियन्त्रण करने में मूल्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । ये अभिप्रेरणा को शक्ति देते हैं, आवश्यकताओं की सम्पुष्टि के स्वरूप को निर्धारित करते हैं एवं उद्देश्यों की प्राप्ति के साधनों के चयन में निर्णय लेने में निर्णायक का कार्य करते हैं । हम सहयोग करेंगे अथवा असहयोग, सहनशील होंगे अथवा असहनशील, उदार- हृदय होंगे अथवा संकीर्ण हृदय, आत्मविश्वासी होंगे अथवा भयभीत यह हमारे विचारों पर ही निर्भर नहीं करता । यह हमारे मूल्यों द्वाग, हमारे स्थायी भावों तथा अर्जित परिमार्जित मूलप्रवृत्तियों के द्वारा निश्चित होता है ।
जीवन और संसार को हम जिस अर्थ के सन्दर्भ में समझने की चेष्टा करते हैं उस अर्थ को सामान्य रुप से मूल्य कहा जाता है। कुछ दार्शनिक मूल्यों को वस्तुनिष्ठ अर्थात् विषय पर आधारित मानते हैं तो कुछ अन्य विचारक इन्हें व्यक्तिनिष्ठ अर्थात व्यक्ति के अनुभव पर आधारित मानते हैं । मूल्यों का वर्गीकरण ज्ञानशास्त्रीय वर्गीकरण से भिन्न है अतः मूल्य शास्त्र में वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य "देश व काल में अस्तित्व" से नहीं लगाया जा सकता।
__ मूल्यों की व्यक्तिनिष्ठ विचारधाराएं पदार्थों का मूल्यांकन मनुष्यों की व्यक्तिगत सन्तुष्टि के सन्दर्भ में करती हैं जबकि वस्तुनिष्ठ विचारधाराएं मानवीय सन्तुष्टि का ध्यान रखते हुए भी कुछ वस्तुनिष्ठ सिद्धान्तों पर विश्वास रखती हैं और उन सिद्धान्तों के अनुसार ही मूल्य शास्त्र के सिद्धान्त स्थिर करती हैं । ध्यान से देखने पर पता चलता है कि मूल्यों को व्यक्तिगत सन्तुष्टि पर आधारित कर देना मूल्यों के मूल्य को ही समाप्त कर देना है। इसीलिए शिक्षा की दृष्टि से इन व्यक्तिनिष्ठ विचारधाराओं का अधिक महत्त्व नहीं है ।
मूल्य एक न होकर अनेक होते हैं । भौतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के रूप में भी उनका वर्गीकरण किया जाता है । नैतिक, आर्थिक आदि दृष्टियों से भी मूल्यों की श्रेणियां बनाई जाती हैं किन्तु ये वर्गीकरण सुविधा की दृष्टि से ही हैं।
. जनवरी- मार्च 1993
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