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तुलसीप्रज्ञा
अनुक्रमणिका
संपादकीय - तेरापंथ साहित्य के मुद्रण की शुरुआत १. सृष्टि - विज्ञान में जैन उल्लेखों का महत्त्व
२. जीवों और पौधों के लुप्त होने की समस्या
३. कवि हरिराज कृत प्राकृत मलयसुन्दरी चरियं
४. अनुप्रेक्षा : विचारों का सम्यक् चिन्तन
५. लोक देवता और उनके वाद्य
६. जैन तीर्थंकरों का गजाभिषेक
७. परमधर्म श्रुतिविहित अहिंसा
८. भाग्य को बदलने का सिद्धांत
९. आचार्यश्री तुलसी की राजस्थानी भाषा-शैली १०. प्रमाण - मीमांसा के परिप्रेक्ष्य में प्रमाण के लक्षण
११. जैन प्रमाण-मीमांसा में स्मृति प्रमाण
१२. गांधीजी ने जैन जगत् को जगाया
१३. तेरापंथ का संस्कृत साहित्य : उद्भव और विकास- ३ १४. उत्तराध्ययन सूत्र में प्रयुक्त उपमान : एक विवेचन
१५. पुस्तक समीक्षा
१६. आचार्य तुलसी की नई कृति : तेरापंथ प्रबोध
English Section
1. Indological Studies in Germany
2. Essence of life
3. Syādvāda and the Principle of Complementarity
4. Ways to ease out Stress
5. The Sabdadvaita concept of
Bharatṛhari and the Jaina Logicians
6. Mathematical Operation in the Sthānāñga Sūtra
7. Xandrames and Sandracottus (2)
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