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आकृतियों के साथ-साथ गज भी हैं। परन्तु इस प्रतिमा के गज अभिषेक मुद्रा में नहीं हैं, अपितु उनकी सूडें नीचे लटकती हुई दिखाई देती हैं।
वासुदेवशरण अग्रवाल ने अपने 'कैटेलॉग ऑव मथुरा म्यूजियम' में कतिपय मध्ययुगीन तीर्थकर प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया है जिनके परिकर में गजों का अंकन सम्मिलित है। पालथी मारकर बैठी नेमिनाथ (सं० सं० बी-२२) की ध्यानमुद्रा वाली एक प्रतिमा के सिंहासन के अगल-बगल एक-एक चामरधर और यक्ष हैं । इनके ऊपर विद्याधर और उनके ऊपर गज खड़े हैं। प्रभामण्डल के ऊपरी भाग में ढोल बजाती एक आकृति के होने का आभास होता है । इस प्रतिमा के ऊपर एक अभिलेख है जिसमें ११०४ विक्रम संवत् की तिथि (१०४७ ई०) अंकित है।" नेमिनाथ की ही एक अन्य खण्डित प्रतिमा (सं० सं० बी-७७) के बायें भाग में पद्म पर गज के पर अवशिष्ट हैं जिनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस प्रतिमा के परिकर में भी गजों का अंकन था।" ध्यानमुद्रा में बैठी एक अन्य जिन-प्रतिमा (सं० १५०४) के गजों की पीठ पर सवार भी दिखाई देते हैं ।२
पद्मासन और ध्यानमुद्रा में बैठी एक तीर्थंकर-प्रतिमा इलाहाबाद संग्रहालय (सं० सं० ए० एम०-५६०) में है । भूरे बलुए पत्थर की बनी यह प्रतिमा कौशाम्बी से मिली है। ९वीं शताब्दी में निर्मित इस प्रतिमा के दोनों पाश्वों में एक-एक चामरधर खड़े हैं । इस प्रतिमा की तिहरी छत्रावली के अगल-बगल एक-एक विद्याधरदम्पति और एक-एक गज हैं। इन गजों की सूंड भी नीचे लटकती हुई दिखाई देती है।" इलाहाबाद-संग्रहालय में ही शान्तिनाथ की एक बैठी मुद्रा वाली मूर्ति है जो इलाहाबाद जनपद के पभोसा नामक स्थान से मिली थी। ११वीं शताब्दी ई० में बलुए पत्थर की निर्मित ध्यानमुद्रा वाली इस तीर्थंकर-प्रतिमा की पहचान इसके पादपीठ पर पड़े वस्त्र पर बने हरिण लांछन से की गई है (सं० सं० ए०एम०-५३३)। इस प्रतिमा के दोनों पाश्वों में एक-एक जिन-मूर्ति और एक-एक चामरधर उकेरे गए हैं। ऊपर की ओर दो ताक हैं जिनके भीतर जिन-आकृतियां बैठी मुद्रा में अंकित हैं। सबसे ऊपर अन्य प्रतिमाओं के समान छत्रावली के अगल-बगल मालाधारी विद्याधर और गजों की उपस्थिति दर्शनीय है ।"
राजस्थान से मिली मध्ययुगीन पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय (सं० सं० ६२.४३४) में प्रदर्शित है ।१५ पद्मासन में बैठी और सप्तशीर्षी फण से सुरक्षित इस प्रतिमा के दोनों पावों में एक-एक बैठी श्रावक-आकृति, एक-एक खड़ी जिन-आकृति, एक-एक मालाधारी विद्याधर और एक-एक गज उत्कीर्ण हैं । गजों की पीठ पर एक-एक सचार भी हैं । फण के ऊपर तिहरी छत्रावली और उसके ऊपर एक ढोलवादक दिखाई देता है।
जीवन्तस्वामी की एक अति सून्दर प्रतिमा जोधपुर-संग्रहालय में है। १०.११वीं शताब्दी ई० में निर्मित यह प्रतिमा राजस्थान के नागौर जनपद के खींवसर खण्ड १८, अंक ३ (अक्टू०-दिस०, ९२)
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